"वे लाल भी है, बहादुर भी औऱ शास्त्री भी"

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हमारे देश के पुरुषों की औसतन ऊँचाई पांच फुट पांच इंच हुआ करती थी अब कुछ इंच बढ़ गयी होगी लेकिन जब देश आजादी के बाद अपने संविधान निर्माण के बाद देश निर्माण की ओर अग्रसर हो रहा था तब पांच फुट पांच इंच के औसत कद वाले एक व्यक्ति को स्थाई सरकार के कर्णधार पंडित जवाहर लाल नेहरू के आकस्मिक निधन के बाद देश की सत्ता सम्हालने का मौका दिया गया। दरसअल नेहरू जी और सत्ता सम्हालने के लिए योग्य होने वाली इंदिरा गांधी के बीच के अंतराल में सत्तारूढ़ पार्टी के भीतरी कलह ने अवसर की राजनीति को जन्म दिया था। आवश्यकता इस बात की थी योग्य समय आने तक योग्य व्यक्ति को देश का दायित्व दिया जाए जो सही समय आने तक गद्दीनशीन रहे। तमाम दमदार लोगो के रहते सहज लाल बहादुर शास्त्री जी का चयन हो गया। वे सीधे इंसान थे इस कारण उनकी राजनीति भी सीधी थी। वे जानते थे कि विभाजन की त्रासदी को झेलना पड़ेगा और पड़ोसी देश कमजोर करने की कोशिश करेंगे। 1965 में पाकिस्तान के दोगलेपन को शास्त्री जी ने जय जवान के नारे से मुंहतोड़ जवाब दिया तो देश मे अकाल ओर खाधान्न की कमी ने जय किसान के नारे को सफल बनाया। वे हरित औऱ श्वेत क्रांति के जनक थे जिसे आगे चलकर स्वामीनाथन औऱ कुरियन ने पुख्ता किया। लाल बहादुर शास्त्री साधारण परिवार से आये थे सो वे आम आदमी की जरूरतों को करीबी से समझा करते थे। देश की अवसरवादिता की राजनीति ने उनको हटाने के लिए जो षडयंत्र रचा वह किसी से छुपा नही है। ताशकंद में उनकी मृत्यु से उपजे शक की प्रामाणिकता आज तक यक्ष प्रश्न की तरह खड़ा है। इस छोटे कद के विराट व्यक्ति को अवसर मिलना चाहिए था लेकिन नही मिला।आज ही के दिन इस देश के इस सहज नेतृत्व ने जन्म लिया था। उनकी जयंती पर अन्य का जन्मदिन मनता है इस कारण ये व्यक्ति नेपथ्य में चला जाता है। देश मे रंग लाल, तो लाल बहादुर शास्त्री से ही हैं।


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