रावण मरते नही है

लेखक - संजय दुबे

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रावण एक व्यक्ति नही विचारधारा है।आदिकाल से चल रही पुख्ता विचारधारा। अच्छाई होने के बावजूद बुराई को पोसने की विचारधारा। पंडित था रावण,पाण्डित्य से लबरेज, ज्ञान का भंडार, राज काज में माहिर, पुरोहिती का विलक्षण ज्ञानी लेकिन विस्तारवादिता का लोभ था ।शक्तिशाली दिखने के लिए उचित के साथ अनुचित कार्य के प्रति रावण की आसक्ति ही उसके देहांत का कारण बनी।घर मे अनेको पत्नियों के होते पर एक स्त्री जिसे जीत न सकने के अफसोस था उसके अपहरण का लोभ ये सिद्ध करता है कि जो पुरुष पर स्त्रियों के प्रति जुदा दृष्टिकोण रखता है उसके भीतर रावण वास करता है। आज के युग मे बढ़ते बलात्कार की घटना ये सिद्ध करते है कि रावण का मरना असंभव है।

हमारे देश में राम आदर्श है,मर्यादा पुरुषोत्तम है। उनके लिए लिखे संस्कृत में वाल्मीकि औऱ अवधि में तुलसी के द्वारा लिखे राम चरित मानस को घर घर में रखा जाता है,पढ़ा जाता है। राम बनने की प्रक्रिया हर घर मे अपनायी जाती है। घर गए में राम पूजे जाते है। हमारी संस्कृति में राम राम जन्म से लेकर मृत्यु तक अनुगुंजित होती है। हर घर मे पिता दशरथऔर माँ कौशय बन अपने बड़े पुत्र में राम को देखते है। हर घर की सीता अपने पति में राम देखती है। हर लक्ष्मण भारत ,शत्रुघ्न अपने बड़े भाई में राम देखते है। प्रजा अपने सत्ताधीशों में राम देखती है लेकिन हमारी चरमराई व्यवस्था में राम के बजाय रावण की बहुतायत देखने को मिलती है जो ये भी सिद्ध करता है कि त्रेता युग मे पावन कार्यो का सत्कर्म कलयुग में कमी आ गयी है। अब घर घर रावण दृष्टिगोचर होते है। घर मे कदाचित क्षणिक राम का लबादा ओढ़ भी ले तो घर से बाहर होते ही रावण बन जाते है।

 देश मे दूरदर्शन युग के प्रारंभिक काल मे धारावाहिक के दौर में रामानंद सागर ने धार्मिक धारावाहिक रामायण लेकर आये थे। ये कार्यक्रम इतना संवेदनशील बन गया था कि धारावाहिक के समयान्तराल में सड़के सूनी हो जाती थी। रेल्वे स्टेशन में यात्री गाड़ियों को रुकना पड़ जाता था। इस धारावाहिक में अरविंद त्रिवेदी रावण की भूमिका में आये थे। उनके अभिनय की बड़ी तारीफ हुई थी। वे स्वाभाविक रावण से दिखे थे। रामायण धारावाहिक खत्म हो गया। कालांतर में चरित्र भूमिका निभाने वाले देश के विधि विधान बनाने वाले संसद के सदस्य हो गए। ये उनके चरित्र भूमिका का राजनैतिक पारिश्रमिक था। आज देह से उनका अवसान हो गया।चारित्रिक रावण का तो धारावाहिक में ही अंत हो ही चुका था लेकिन रावण के कितनी भी भूमिका लोग निभा ले, मर जाये, रावण हर व्यक्ति के भीतर जिंदा है।


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