लोग कहते है कि हाथो की रेखा है।
भारतीय सिनेमा के पुरुष दर्शकों के लिए नायिका सदैव एक विस्मित कर देने वाली तिलस्म ही रही है।शायद ये प्रकृति से जुड़े प्रश्न का भी उत्तर भी है कि विपरीत लिंग के प्रति स्वाभाविक आकर्षण होता है। इसी आकर्षण को लेकर जहां पुरुष दर्शको के दिलोदिमाग में अनेक नायिकाओं ने घर बनाया वही उनके वस्त्र- आभूषण सहित उनके अदायगी ने महिला दर्शको के भी मस्तिष्क में जगह घेरने का काम किया। यूं तो सिनेमा जगत में नायिकाओं का दौर सिनेमाई शुरुवात के साथ हो गया था । मधुबाला ने सौंदर्य मापदंड की पहली रेखा खिंची थी उनके बाद वैजंती माला, नूतन,शर्मिला टैगोर ,हेमा मालिनी, इस परंपरा की वाहक रही। हेमा मालिनी के साथ साथ फिल्ममें दक्षिण की नायिकाओं के प्रवेश की संभावना बढ़ने लगी। इधर फिल्म निर्माण की संख्या मे आशातीत वर्द्धि हुई। इसी दौर में एक नायिका दक्षिण से आई जो प्रसिद्ध नायक जेमनी गणेशन की बेटी थी- रेखा।
इस रेखा में नायिका होने का कोई गुण नही था। सावन भादो फिल्म में आई तो महज दीगर नायिकाओं के समान केवल खाना पूर्ति करने वाली ही थी। अंग प्रदर्शन को उन्होंने जरिया बनाया और इसी के बल पर केवल संख्यात्मक फिल्में करती रही। उनको सस्ते मनोरंजन परोसने वाली नायिका ही माना जाता रहा।अचानक ही वे गुलजार के फिल्म घर की नायिका बनी। ये अचानक ही ने उनके जिंदगी के मकसद को बदलने का भी घर बना। इस फिल्म के बाद वे नायिका से अभिनेत्री बनने की रेखा में चलने का साहस किया।कालांतर वे अपनी रेखा को दूसरों की खिंची रेखा से बड़ा करना शुरू किया और हेमा मालिनी और माधुरी दीक्षित के बीच के अंतराल में वे लगभग सभी स्थापित अभिनेताओं की अभिनेत्री बनी।
तवायफखाना, रसूखदारों के मनोरंजन का किसी जमाने मे अड्डा हुआ करता था। इन जगहों में मुजरा होता। गायन औऱ नृत्य का शामिलात सम्मिश्रण होता। रसूखदार अपने वैभव का सार्वजनिक प्रदर्शन रुपये फेंक कर करते। इन्ही तवायफों के रिश्ते भी बनते औऱ सामाजिक ढांचे चरमराते भी। रेखा के सिनेमाई यात्रा का एक लंबा दौर इसी भूमिका में चली। घर फिल्म के बाद जब उनके हिस्से मे कलयुग,खूबसूरत, इजाजत, सिलसिला जैसी फिल्में आयी लेकिन उनके लिए मील का पत्थर बनने वाली फिल्म भी तवायफों की जिंदगी से जुड़ी हुई फिल्म उमरावजान ही थी। वे दर्शक जिन्हें तवायफ खाने में जाने की लालसा रही लेकिन वे सामाजिक डर से ऐसी जगह जा नही पाए और किसी तवायफ की जिंदगी को समझने की हसरत रखे हुए थे उनको एक कठिन जिंदगी को सरल रेखा में रेखांकित कर दिया था रेखा ने। ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा बयार है हदे निगाह तक यहां गुबार ही गुबार है जैसे गीत की अदायगी ने रेखा को समाज मे अस्वीकृत महिलाओ के जीवन का स्केच बना दिया। कहते है नायिकाएं कभी कभी किसी भूमिका को इतना आत्मसात कर लेती है कि कहना मुश्किल होता है कि अभिनय है या वास्तविकता।रेखा ने कथित उमरावजान को जी भर के जिया औऱ इस चरित्र को अमर कर दिया।
सिनेमाई जिंदगी के बाहर वे सिल्क की साड़ियों के आकर्षक पहनावे के साथ साथ आभूषणों के कायदे के लिए जानी जाती है। उम्र हर किसी को प्रभावित करता है,रेखा भी उनसे जुदा नही है। जिंदगी की यात्रा जारी है,यही उनका रेखांकन है।
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