खेल के बहाने जंग

लेखक : संजय दुबे

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एक देश के दो टुकड़े करने वाले तो अब इस दुनियां में जिंदा नहीं बचे है लेकिन उनके दोगले कार्यप्रणाली ने दो देशों के बीच वैमनस्यता की इतनी बड़ी खाई खोद दी है कि दोनों देश के लोग गीता और कुरान पर हाथ रख कर भी कसम खा ले तो भी विश्वास में कोई अविश्वास का तड़का बचा रह जाता है। एक सीमा के दो छोर पर दोनो देशो में से उधर की खूबी ये है कि वे सच्चे राष्ट्रवादी है, धर्मपरायण है,गद्दार नही है। ईमानदारी से हारे या जीते मातम औऱ जश्न खुलकर मचाते है। देश का झंडा लेकर अपने देशभक्त होने का प्रमाण पूरी दुनियां में देते है। ऐसे सच्चे राष्ट्रवादी,धर्मपरायण, लोगो को पसंद किया जाना चाहिए। अब बात दूसरी तरफ की भी हो जाये।सही मायने में हमारे देश मे न तो राष्ट्रीयता में ईमानदारी है और न ही धर्मपरायणता है। इस देश मे राष्ट्र विरोधी भी है और धर्म विरोधी भी ,सम्प्रदाय विरोधी तो लोग है संस्था है दल है। हमे गर्व से भारतीय कहने में दर्द होता है। 1947 को याद कर जख्म पर मलहम की जगह नमक डाला जाता है। देश के सीमा के भीतर देश मे रहने वाले लोग ही ऐसा वातावरण बना के रखे है कि उनके देशभक्त न होने के सबूत मिलते है। आपने बीते 74 सालों में कभी ये खबर पढ़ा है कि पाकिस्तान में रामराज्य परिषद या किसी कट्टरवादी संस्था( ठाकरे जी की शिवसेना) ने पाकिस्तान के किसी हिस्से में बम विस्फोट किया है,? किसी को उसी के देश मे शरणार्थी बनाया है? ये जरूर सुना पढ़ा होगा कि अपने ही देश मे हरिसिंह द्वारा मांगे गए शरणागत के बाद से आजतक कश्मीर में खून के छीटे सड़को पर सुर्ख होते गए। हमारे संरक्षको ने मौन तमाशा देखा है जिसके चलते अपने ही देश मे लोग सालो से शरणार्थी बने हुए है। अब ऐसे लोग जब क्रिकेट की जंग में देश के सामने पाकिस्तान को देखते है वे सिर्फ जीत और जीत ही चाहते है। ये जीत उनके जख्म को मल्हम लगाता है। यही जीत दोगले लोगो के गले से नीचे नही उतरती है जो खाते यहां का है और गाते वहां का है। ये वही लोग है जिन्होंने सालो पहले भारतीय हॉकी टीम के हारने पर जश्न औऱ हारने पर मातम पीटा था। क्रिकेट में भी सालो से बंद रिश्ते की शुरुआत हुई थी तो इस खेल में भी यही हाल था। क्रिकेट को सट्टा में बदलने वाला औऱ कोई नही दाऊद इब्राहिम ही था। अजहर को कप्तान भारत का बनाया गया था लेकिन जब आरोप प्रमाणित होते दिखा तो वे साम्प्रदायिक हो गए। ऐसे में खेल नही होता है जंग होता है भले ही खिलाड़ी बेट लेकर जाते है लेकिन वह तलवार होती है ।फेंकी जाने वाली बाल सेनिको के गर्दन हुआ करती है। मैदान में कप्तान नही कमांडर इन चीफ उतरते है। टीम नही सेना उतरती है।

आज शाम 7.30 बजे एलान ए जंग की घोषणा हो चुकी है। हमारा पुराना इतिहास शानदार रहा है। 13 मैदान फतेह किये हुए है लेकिन युद्ध के समान खेल भी अनिश्चितता लिए हुए है जब तक240 बाल का सफर खत्म नही होता सूर्यास्त नही होगा। 

 कुछ ही देर में हवा में घूमता सिक्का जब जमीन पर गिरेगा तो जीतने वाले को फैसला करना होगा कि तलवार थामना है या गोला। देश के सच्चे राष्ट्रवादी विराट कोहली की टीम के साथ होंगे लेकिन ग़द्दार लोग आज भी वही का गाएंगे। एक बार फिर राष्ट्रवादी पाकिस्तान के नागरिकों के समान रहिये। जीते तो भी देश के साथ, हारे तो भी देश के साथ। कोई गद्दारी नही।


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