31 अक्टूबर 1984
लेखक - संजय दुबे
1984 का वर्ष , पत्रकारिता में मेरे प्रारम्भिक जीवन का वर्ष था। महाकौशल तब के समय मे सीखने की दृष्टि से एक आदर्श समाचार पत्र था क्योंकि बहुत कम संख्या में लब्ध रहे पत्रकारों से ये समाचार पत्र प्रकाशित होता था। मेरा क्षेत्र खेल से था लेकिन बिना शहर/ ग्रामीण अंचल के समाचारों को लिखे बिना पत्रकारिता अधूरी मानी जाती थी। महज तीन माह में बहुत कुछ देखने, सुनने, समझने और लिखने के लिए महाकौशल में मिला।नीरव जी और आसिफ इकबाल तब महाकौशल के महारथी हुआ करते थे ये दोनों सिखाने वाले अच्छे थे। देश/ राज्य में सिक्खों में से कुछ लोगो की हरकतें रायपुर सहित दुर्ग, राजनांदगांव सहित कई नगरों में बरदास्त से बाहर होते जा रही थी। भिंडरावाले की मौत के बाद सार्वजनिक रूप से कुछ सिक्ख नवयुवकों द्वारा माहौल में तनाव बढ़ाया जा ही रहा था।
31 अक्टूबर 1984 को करीब 10 बजे के बाद पूरे शहर में एक खबर आग की तरह फैली कि देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनके ही सुरक्षा कर्मियों ने गोली मार दिया है। वे गम्भीर रूप से अस्पताल में भर्ती कराई गई है। तब आकाशवाणी की खबरों की महत्ता निरंतर बढ़ते जा रही थी। कोई सुने या न सुने बता जरूर रहा था। अंततः सच भी प्रसारित हुआ और जैसे ही श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु की पुष्टि हुई वातावरण में पसरता तनाव, आवेग में बदलने लगा। थोड़ी ही देर में शहर सहित देश के अनेक भागों में साम्प्रदायिक हिंसा और आगजनी बढ़ने लगी।
रायपुर में कर्फ्यू लग गया लेकिन भीड़ अनियंत्रित थी। ऐसे में पत्रकारिता का महत्व कितना है ये समझ मे आया।। एक तरफ शहर का वातावरण भी सुधरे दूसरी तरफ बढ़ती हिंसा भी रुके के खबरों को संतुलित करना मुश्किल सा लगता था। 2 नवम्बर 1984 को रात 10 बज रहे थे। मुझे प्रथम पृष्ठ की गलतियों को सुधारने के बाद प्रूफ ओके करके जाना ही था कि लगभग छह फुट के चार पांच सिक्ख तलवार हाथ मे संपादकीय कार्यालय में दाखिल हुए। एक बरगी तो हिम्मत जवाब दे गई। लगा ये लोग बदले की भावना से अगर आये तो मौत निश्चित है लेकिन उनमें से एक नए बताया कि कर्फ्यू के कारण अफवाह बहुत फैल रही है। हम लोग जानने आये है कि क्या जयस्तंभ के आसपास शाम में सामूहिक नर संहार हुआ है।
मेरी जानकारी में ऐसा कोई समाचार नही था सो मैंने आस्वस्त किया कि ऐसी कोई घटना घटी नही है ये केवल अफवाह है। साथ ही उनके तलवार ले कर आने पर नाराजगी जाहिर किया तो उन्होंने बताया कि उन्हें डर है कि बाहर निकलने पर उनको मार दिया जाएगा सो आत्म रक्षा के लिए तलवार रखे है।
कुछ ही दिनों में वातावरण सामान्य हो गया।सिक्ख सम्प्रदाय जो कभी हम सबकी रक्षा के लिए बलिदान के लिए जाने जाते थे/है वे लोग कुछ लोगो के कारण परेशान हुए। इन सब के बावजूद जितनी तेजी से वे मुख्य धारा से हटे थे उसके दुगने गति से वे वापस भी आ गए। इसके लिए देश ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई?
एक करिश्माई व्यक्तित्व श्रीमती इंदिरा गांधी असमय ही हमसे जुदा हो गयी खासकर तब जब 1980 के चुनाव में वापसी की थी और परिपक्व होकर देश को नए आयामो की तरफ लेकर चलने के लिए मन बना चुकी थी
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