बेमिसाल राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

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देश के पहाड़ो,जंगलो में अभावों के बावजूद सदियों से जीने वाले आदिवासियों को आदिवासी इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी संस्कृति नहीं छोड़ी,अपनी परंपराओ को जीवित रखा, अपनी प्रथाओं को आत्मसात किये रहे। उन्हें शहरो की चकाचौंध ने पलायन के लिए मजबूर नही किया। वे घने जंगलों में प्राकृतिक संसाधनों से अपनी आजीविका चलाते रहे, उन्हें धन पिपासा कभी नही रही। यही वजह है कि वे कम संसाधनों में भी खुश रहते है अभाव उन्हें सालती नही है। यही वजह है कि वे गीत गाते है, स्वनिर्मित वाद्य यंत्र बजाते है, अपने पूर्वजो और अपने बनाये लय ताल पर थिरकते है,। उनके जीवन मे गीत, संगीत और नृत्य का विशेष महत्व है

उनकी इसी पारंपरिक कला को निखारने औऱ प्रोत्साहित करने की दृष्टि से आदिवासियों के अपने राज्य छत्तीसगढ़ में तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भव्य आयोजन हुआ। अब जबकि युवा लोग विदेशी गीत संगीत की ओर झुक रहे है। देश के फिल्मी वातावरण में नकल औऱ चोरी के चलते संगीत के नाम पर शोर और नृत्य के नाम पर व्ययाम विकल्प बन चुकी है तब राज्य में आदिवासियों का समूह नृत्य मन मस्तिष्क को बहुत सुकून देने वाला रहा। देश के चारो दिशाओं के सुरम्य जंगल पहाड़ो के बीच रहने वाले हमारे बीच आये तो मिश्रित आनंद का बोध हुआ

 आदिवासी कबीले में रहते है और हर कबीले की अपनी जुदा जुदा प्रथा,परंपरा, संस्कृति रहती है। इसका ज्ञान तब होता है जब वे हमारे समक्ष होते है। छत्तीसगढ़ शासन के मुखिया श्री भूपेश बघेल और संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने जो भगीरथ प्रयास किया उसकी जितनी भी सराहना की जाए कम होगी, उसी के चलते तीन दिनों तक राज्य के निवासी विभिन्न स्थानों से आये आदिवासी लोक कलाकारों के आकर्षक पहनावे,आभूषण, उनके स्वर लहरी,उनके वाद्य यंत्रों की सुमधुर नाद,उनके नृत्यो में भाव भंगिमा,गति संतुलन, के साथ साथ तारतम्यता का अद्भुत तालमेल देखने को मिला। मेजबान राज्य को मेजबानी करने के कारण प्रथम नही आना था ,सो नही आये अन्यथा छत्तीसगढ़ के आदिवासी सबसे बढ़िया राष्ट्रीय छतीसगढिया थे।

 राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में सात देशों के भी आदिवासी समूह ने शिरकत किया।उनकी प्रस्तुति भी नयनाभिराम थी। वे तीव्र गति के पुरोधा रहे है चाहे गीत हो या संगीत या नृत्य वे थिरकते नही झूमते है, उन्होंने दर्शकों का दिल जीता लेकिन दिल जीतने के मामले में राज्य के यशश्वी मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल औऱ संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत रहे।इनमे प्रयासों ने देश विदेश केआदिवासी समूहों को विशिष्ट अतिथि का दर्जा देकर उनके आवभगत में कोई कमी नही रहने दी। अद्वितीय विशाल रंगमंच, भव्य रोशनी,स्तरीय मंच संचालन सहित आवास,भोजन,परिवहन की बेमिसाल व्यवस्था ने आदिवासी समूहों का दिल जीत लिया। मैंने अनेक समूहों से उनके अनुभव साझा किया ।समवेत स्वर यही था कि छतीसगढिया वास्तव में सबसे बढ़िया।वे बता रहे थे कि बीते 35 सालों में वे घूम घूम कर प्रस्तुति दे रहे है लेकिन ऐसा आवभगत कही नही मिला।

 राज्य के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी और संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने शानदार आयोजन की जो लकीर खिंची है उससे भविष्य में अपेक्षा बहुत बढ़ गयी है।आने वाले समय मे राज्य के पहचान के रूप में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव रहे ऐसी आशा है।

 राज्य के राजधानी के कलेक्टर श्री सौरभ कुमार के लिए ये आयोजन चुनोती थी जिसे उनकी टीम ने स्वीकार किया सफल बनाया।

सभी को बधाई, सभी को शुभकामनाएं।


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