चली गई मन्नू
लेखक : संजय दुबे
एक उम्र थी जो जी लिया फिर रेत की तरह मुट्ठी से रीत गयी जिंदगी। यही सच है कि इस दुनियां में हर आने वाले को जाना है सो मन्नू आयी,रही, ढेर सारा लेखन कार्य किया और आज इस दुनियां से रुखसत हो गयी। मैं मन्नू को एक लेख से जाना था जिसमे उन्होंने गंगा घाट जाते समय हनुमान के मंदिर में अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले विद्यार्थियों के द्वारा "हाय हनु" कहने पर भाषा के साथ देश की बदलने वाली संस्कृति की तरफ इशारा किया था। उनके लेखन की शैली ने मुझे प्रभावित किया और फिर उनके लिखे "आपका बंटी", "त्रिशंकु" औऱ "महाभोज" को पढ़ ही लिया।" यही सच है" इसलिए नही पढ़ा क्योकि रजनीगंधा फिल्म देख लिया था। "आपका बंटी" एक ऐसे बच्चे की मनोदशा थी जिसके माता पिता तलाक के बाद पुनर्विवाह कर लेते है और बंटी सामाजिक मझधार में फंस जाता है। "महाभोज" एक औसत दर्जे के व्यक्ति की कहानी है जो भृष्टाचार के मकड़जाल में फंस के खुद को एक ऐसे अधमरे व्यक्ति के रूप में आभासित होता है जिसे खाने के लिए गिद्ध मंडराते लगते है।" मैं हार गई" औऱ "तीन निगाहों की एक तस्वीर" "आंखों देखा झूठ" मैं पढ़ नही सका, क्यो ? इसका कोई कारण नही है बस पढ़ नही पाया। मन्नू भंडारी एक सशक्त लेखिका रही है जिन्होंने नई कहानी युग के प्रवर्तकों में अपनी जगह बनाई। वे निर्मला वर्मा,कमलेश्वर, भीष्म साहनी सहित अपने पति राजेन्द्र यादव के साथ नए विषय जिसमे आम आदमी का सच सामने आ सकता था की समर्थक थी। महिलाओ के समाज मे स्थिति पर उनकी कलम विद्रोही थी। उन्होंने महिलाओ को सशक्त बनाने, आर्थिक रूप से सक्षम होने, समाज की रूढ़ियों के विरुद्ध खड़े होने का आव्हान किया। जो उनके कहानीकाल में समाज से बगावत ही था। आज जब उन्होंने आंखे मूंदी तो उन्हें आज की सशक्त औऱ सक्षम महिलाओ को देखने का संतोष जरूर रहा होगा। मन्नू नाम से बहुत छोटा है लेकिन रचना का भंडार था इसी कारण वे मन्नू भंडारी थी।
शब्दो की सृजनकर्ता के देह का अवसान हो गया लेकिन लिखे शब्द तो अमर है। किसी के विचार आखिर मरते कहॉ है?
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