जादू का दक्षिण या दक्षिण के जादू

लेखक: संजय दुबे

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भारत के दक्षिण को पूर्व,पश्चिम उत्तर की तुलना में ज्यादा कठिन क्षेत्र माना जाता रहा है।खासकर भाषाई मामले को लेकर विशुद्ध संस्कृत भाषा से उपजे तमिल, तेलगु, मलयालम और कन्नड़ भाषा को पढ़ना, लिखना, और बोलना अत्यंत कठिन काम तो है ही, समझना भी आसान नही है। इन भाषाओं की लिपि देखकर तो और भी समझ मे आ जाता है कि ये भाषाएं सरल नही है। हिंदी भाषी क्षेत्र में इन भाषाओं के लोगों के आने के बावजूद इनका सम्मिश्रण नही हो पाया है लेकिन इन क्षेत्र के कलाकारों ने दक्षिण को जोड़ने का बहुत बड़ा काम किया है। दक्षिण की नायिकाओं ने तो हिंदी भाषी फिल्मो में ड्रीम गर्ल रही है। वैजयंती माला, पद्मिनी, हेमा मालिनी, जया प्रदा, श्रीदेवी,दिव्या भारती, लक्ष्मी, सहित अनेक नायिकाओं ने जोड़ने का काम किया है।नायकों में भी,अरविंद मोहनलाल, कमल हासन, नागार्जुन, चिरंजीवी नायको ने हिंदी फिल्मों में उपस्थिति दी लेकिन जिस कलाकार का जादू हिंदी भाषी क्षेत्र में सर चढ़ कर बोला वे रजनीकांत है। पश्चिम के जन्मे शिवाजी राव गायकवाड़ के बस कंडक्टर से नायक बनने की कहानी चाय वाले के प्रधानमंत्री बनने के समान ही है। 

नकारात्मक भूमिकाओं के बाद सकारात्मक भूमिकाओं में बदलाव की नींव रजनीकांत ने ही रखा था जिसे हिंदी फिल्मों में विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा और शाहरुख खान ने आजमाया और सफलता के नए मापदंड खड़े किए।

रजनीकांत के फिल्मोग्राफी को सभी लोग जानते है लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि उनको फिल्म में लाने वाले के बालाचंदर ,रजनीकांत के अविस्मरणीय गुरु है जिन्होंने उनको तमिल भाषा सीखने पर फिल्मो में तब लाने का फैसला किया था जब रजनीकांत, शिवाजी राव गायकवाड़ हुआ करते थे- बस कंडक्टर। काश हर व्यक्ति को के.बालाचंदर मिले जो जीवन निखार दे। आज 71 साल की उम्र पूरा करने वाले रजनीकांत, देश के सबसे पहले महंगे कलाकार है जिन्होंने सबसे पहले करोड़ रुपये का मेहनताना लिया था। उनका महंगा स्टारडम न केवल रुपये में रहा बल्कि उनके प्रशंसकों में भी है। वे केवल फिल्मो के माध्यम से मनोरंजन करने वाले ही नही है बल्कि समाज सेवा में भी उनके सामने बाकी स्थापित सुपर स्टार फीके है। उनके समकक्ष कलाकार नकली बाल,ढेरो सर्जरी, के अलावा वेशभूषा के माध्यम से कृत्रिम जवान बनने की दौड़ में है लेकिन रजनीकांत इनसे परे है। बड़े से बड़े समारोह में वे सफेद धोती, कुर्ता , सादे चप्पल में खिचड़ी बालो में बिना किसी तड़क भड़क के आना उनकी सादगी है। कैमरे के सामने आज भी वे बॉस ही है। उनकी अदायगी निराली है, वे वर्सेटाइल है।


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