धर्मयुग औऱ धर्मवीर भारती

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जो युग रेंग रहा है, चल रहा है, या दौड़ रहा है उस युग मे पढ़ने की रीति रिवाज में जबदस्त परिवर्तन की बयार बह रही हैं। मुद्रण से बने कलेवर की जगह डिजिटल शब्द और इनसे कही अधिक पढ़ने के बजाय सुनने और देखने की आदत बढ़ रही है उनके लिए 1947 से लेकर अब का काल देश के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के मापदंड के आधार पर प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मायने रख सकती है लेकिन जो लोग आज अपने जीवन के अर्द्ध शतकीय पारी खेल चुके है उनके लिए दो धर्म पहला- धर्मयुग और दूसरा धर्मवीर भारती बहुत मायने रखते है।

 वो दौर जिसमे न तो नेटवर्क था और न ही संवाद के लिए मोबाइल की दुनियां थी और न ही गूगल था तब अध्ययन ही विकल्प था। 1950 से हिंदी की पत्रिका धर्मयुग का प्रकाशन मुम्बई से शुरू हुआ था और 1960 (मेरे जन्म के वर्ष के साथ) से हिंदी पत्रिका के प्रकाशन में क्रांति का दौर शुरू हुआ। धर्मयुग से धर्मवीर भारती जुड़े - बतौर संपादक। मुम्बई जिसके हवा पानी मे व्यवसायिकता का तेवर है उसमें प्रयाग विश्वविद्यालय में पी एच डी के बाद प्राध्यापक रह रहे धर्मवीर भारती ने संपादकीय धर्म निभाने की शुरुवात की। ये शुरुआत एक युग की शुरुवात थी। धर्मयुग का कलेवर ऐसा रहता कि घर के सभी लोग पढ़ लेते। समसामयिक विषयो में धर्मयुग की बात ही निराली थी। एक अंक पढ़ते पढ़ते दूसरे अंक की प्रतीक्षा सालने लगती थी।

 जो पत्रिका महज 59 हज़ार की मुद्रण संख्या पर धर्मवीर भारती ने स्वीकारी थी वो उनके रहने से 7 लाख पहुँच जाए तो इसे धर्मवीर भारती का तिलस्म ही माना जा सकता है। देश का हर व्यक्ति तभी नामवर माना जाता था जब उसे धर्मयुग में जगह मिल पाती थी। मुझे अच्छे से याद है की कपिलदेव ने जब 100 विकेट लिए थे तो वे धर्मयुग के पूरे पृष्ठ पर थे।" डब्बू जी" के कार्टून जक प्राण कार्टूनिस्ट के द्वारा बनाये जाते थे, जान हुआ करती थी।

 धर्मयुग से परे धर्मवीर भारती भारती का अपना जुदा व्यक्तित्व था। सूरज का सातवां घोड़ा, गुनाहों का देवता उनके अमर उपन्यास है। अंधा युग उनका अविस्मरणीय नाटक है। कनुप्रिया उनकी लंबी कविता है।कहना मुश्किल है कि वे कथाकार थे या निबंधकार या कवि या संपादक। 

धर्मवीर भारती ने अपनी षष्टिपूर्ति के समय धर्मयुग को छोड़ा तो धर्मयुग जी न सका। शायद धर्मयुग को धर्मवीर की लत लगी हुई थी। आज सूरज के सातवें घोड़े का जन्मदिन है। ऐसे संपादन कला वाले लोग बहुत ही कम होते है।


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