उड़ गई स्वर कोकिला

लेखक: संजय दुबे

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"आपकी सेवा" नाम तो फिल्म का था जिस फिल्म के साथ लता मंगेशकर ने अपने गायिका सफर की शुरुआत की थी। तब न तो लता मंगेशकर ने सोचा रहा होगा और न ही किसी ने सोचा होगा कि वे मानव सेवा के लिए इतनी लंबी गायन यात्रा करेंगी वह भी अकेली। दरअसल भगवान ने लता मंगेशकर को सेवा के लिए ही बनाया था। गायन की दुनियां में उनका आना अपने परिवार को आर्थिक सहयोग के संबल प्रदान करना था। इस सेवा को उन्होंने अपने जीते जी बखूबी निभाया। अपने परिवार के अलावा उनका देश भी परिवार था जिसके मनोरंजन का भार भी उन्होंने उठाया । लगभग 63 वर्ष तक सक्रिय रहते हुए उन्होंने तीन पीढ़ियों के लिए स्वर दिया। शोभना समर्थ, तनुजा औऱ काजोल इस बात के उदाहरण है कि लता ने तीनों के लिए स्वर दिया। लता मंगेशकर जब स्वर की दुनिया मे कदम रख रही थी तब गायन में शमशाद बेगम औऱ नूरजहां का जलवा था। तब के दौर में नाक के भर गायन खूबी मानी जाती थी। लता मंगेशकर ने भी अपने आरंभिक दौर में ये ये नुस्खा आजमाया लेकिन जब वे स्वाभाविक हुई तो दुनियां नर जाना कि स्वर मिठास क्या होती है। "आएगा आएगा आएगा आने वाला" ये गीत महल फिल्म का था जहां से नई लता पल्लवित हुई थी। इसके बाद फिल्म दुनियां में हर नायिका के लिए लता मंगेशकर का स्वर अनिवार्य सा हो गया था। हर संगीतकार की चाहत हुआ करती थी कि लता का गाया गीत जरूर हो। लता मंगेशकर इतनी विराट हो गयी थी कि उनके रहते कोई भी दूसरी गायिका स्थाई नही हो पाई। यहां तक कि आशा भोंसले को भी केवल कैबरे औऱ तवायफखाने के गाना गाने की मजबूरी ही थी। क्लब के दौर आने पर दूसरी गायिकाएं भले ही उभरी लेकिन संगीत और स्वर की समझ का मापदंड अपनाया गया तो विकल्प लता मंगेशकर ही रही। उनके उम्र ने गायन की सीमा तय की तब 1988 में अल्का याग्निक औऱ श्रेया घोषाल के लिए रास्ता बना। लता मंगेशकर के गाये बेहतरीन गीतों की सूची भी बनाई जाए तो 500 से अधिक गाने होंगे जिनमे वे अपनी अंतरात्मा से गानों को गायी होंगी लेकिन जब कभी आंख बंद कर लता जी को सुनना चाहे तो एक गीत" मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे" जरूर सुनना चाहिए। यही गीत उनके नश्वर शरीर के पंच तत्व में विलीन होने के बाद उनकी पहचान रहेगी। लता मंगेशकर जी अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नही किया वे जिंदगी भर क्लब में होने वाले गाने नही गायी। अहसास फिल्म में गाये इकलौते क्लब गाना "रूठो ना" को उन्होंने अपनी जिंदगी की भूल माना था। वे सरस्वती की देन थी आत्मा नही बेच सकती थी। उनके गायन का सफर फिल्मो से 2007-2008 के पास थमने लगा था। ऐश्वर्या राय के लिए" हमको हमी से चुरा लो" सम्भवतः अंतिम फिल्म के लिए गाया हुआ गाना था। इसके बाद वे भजन की दुनियां में सिमटते गयी। वस्तुतः स्वर की साधना के लिए लता मंगेशकर के पास यही विकल्प था। वे देश दुनियां में लता दीदी के नाम से जानी जाती रही है। दीदी तेरा देवर दीवाना जब उन्होंने गाया था तब लोगो ने "दीदी तेरा दुनियां दीवाना" भी कहा था। लता मंगेशकर की आवाज़ देश की हवा में घुली हुई है। ऐसा कोई दिन नही जाता जब लता मंगेशकर की मिश्री जैसी आवाज़ कानो में न गूंजती हो। इंसान मर कर यादों में सिमट जाता है लेकिन लता जी की आवाज़ अजर अमर है। शरीर से वे हमारे बीच न सही आवाज़ से तो है। उनकी आवाज़ ही पहचान है ये याद रहेगा हमे।


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