भगतसिंह सिंह एक विचाधारा है
आज शहीद दिवस है, बहरी अंग्रेज हुकुमत के कान में आज़ादी के बिगुल की आवाज़ पहुँचाने वाले भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को अदालत द्वारा निर्धारित तारीख 24 मार्च 1931 के एक दिन पहले ही याने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गयी थी। आज़ाद देश मे व्यक्ति को अदालत के फैसले के विरुद्ध कृत्य किये जाने पर सरकार के खिलाफ ही जनमानस उद्वेलित हो जाता है,मानव अधिकार से जुड़े लोग न्यायपालिका में हस्तक्षेप की याचिका लगाते है। न्याय की उम्मीद बनी रहती है लेकिन गुलाम देश मे ये सब बातें नही होती है । दरअसल अंग्रेजी हुकूमत को देश छोड़ने के लिए भय की जरूरत थी ऐसा क्रांतिकारी लोगो के जेहन में था वे विदेश में होने वाली क्रांतियों से ये सबक ले चुके थे। 1917 की रूस क्रांति से शोषकों के खिलाफत की आग से देश के नवयुवक भी तप कर जुनूनी हो चले थे। भगतसिंह ने जलियांवाला बाग और साइमन कमीशन का विरोध करने वाले लाला लाजपत राय के विरुद्ध अंग्रजो के बर्बर व्यवहार से तमतमा गए थे। यही से उन्होंने देश मे एक विचार शोषकों के खिलाफ प्रचारित करना शुरू किया। वे नवयुवकों को जोड़ते जा रहे थे और उनके साथ देश के सबसे निर्भीक आज़ाद चंद्रशेखर का साथ एक नई विचारधारा के साथ अंग्रेजो के खिलाफ लामबंद होते जा रहे थे। देश मे तेज़ी से एक क्रांति की बुनियाद रखी जा रही थी जिसे अनेक लोग पीछे से मदद दे रहे थे। ये वे लोग थे नो जानते थे कि अंग्रेजों के मन मे भय होना अनिवार्य है। महज 26 साल की उम्र में जब अधिकांश युवा अपने ख्वाब चुनते है केरियर बनाते है, विवाह जैसी संस्था में जुड़ कर अमन चैन की दुनियां खोजते है उस उम्र में देश का ये युवक फांसी पर देश की आज़ादी और शोषकों से आज़ादी के लिए प्राण न्योछावर कर दिए। असेम्बली में बम फेंकना असाधारण घटना थी लेकिन भगतसिंह ने अंजाम दिया। वे आसानी से असेम्बली से जा सकते थे लेकिन उन्होंने बहरी सरकार की कान में बात लाने के लिए न्यायालय का सहारा लिया। वे जो बात लोगो तक नही पंहुचा सकते थे वो बाते पहुँचाने में सफलता पाई। भगतसिंह की फांसी से पहले की जिंदगी कितनी बदतर थी ये पढ़ लेने से ही रूह कांप जाती है । जितना उनका आकार था उससे छोटा कमरा था। कोई सुविधा नही थी सो विश्व का सबसे लंबा भूख हड़ताल (116 दिन) उन्होंने किया। इतना त्याग करने के लिए कितनी मजबूत इक्छा शक्ति की जरूरत होती है? आज देश उनकी शदाहत को नमन कर रहा है। पंजाब में आज उनकी श्रद्धा में राजकीय अवकाश घोषित किया जाना सच्ची श्रद्धांजलि है। देश के युवा इस शहीद ए आज़म से अपने मार्ग में आने वाले चुनौतियो का कैसे सामना कर सकते है सीख सकते है।
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