लाभ और उम्मीद!

लेखक: संजय दुबे

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बड़ा ही सार्थक प्रश्न उठा है कि किसी निर्माण से होनेवाले लाभ का फायदा संबंधित को मिलना चाहिए अथवा नही और अगर मिलना चाहिए तो क्या पूर्व में ऐसा किया गया था । यह प्रश्न कश्मीर फ़ाइल से होनेवाले लाभ को कश्मीर के विस्थापितों के संदर्भ में है। ये भी प्रश्न उठा है कि गंगूबाई के लाभ का फायदा क्या उन लोगो को दिया गया जो गंगूबाई जैसी जिंदगी दे रहे है। अभी बात उठ रही है कि एक फिल्म से होनेवाले लाभ का हिस्सा उन लोगो तक जाना चाहिए जिन लोगो की समस्या उठाई गई है। उदाहरण दिए गए है जिनके लाभ का हिस्सा न मिलने का जिक्र है। हम सभी जानते है कि फिल्म जगत एक उद्योग है जिसका काम व्यावसायिक लाभ कमाना अंतिम उद्देश्य है।जाहिर है कि दुनियां का कोई भी व्यवसाई नुकसान नही उठाना चाहता है, हो जाये बात अलग है। लाभ जो प्राप्त होता है उसमें सरकार आयकर प्राप्त कर लेती है( आयकर भी सही नही दिया जाता है, गए अलग विषय है) यहां से लाभकर्ता की मानसिकता बन जाती है कि उसके द्वारा सरकार को जनकल्याण के कार्य हेतु अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर लिया गया है। अब मूल प्रश्न पर लौटते है। क्या गेंहू चाँवल दाल आदि के व्यापारी को अपने मुनाफे में से कुछ हिस्सा किसानों को दिया जाना चाहिए? क्या बहुमंजिला इमारत बनाने वाले बिल्डर को कुछ मकान मजदूरों के लिए बनाना चाहिए? दरअसल लाभ का बंटवारा केवल और केवल भागीदारों के साथ होता है जिस क्षेत्र से प्राप्त हुआ है उसमें नही। फिल्म वाले भी टेक्स देते है ये सरकार की जिम्मेदारी है वह प्राप्त राशि का कैसे उपयोग करे। सरकार की प्राथमिकता सामान्य रूप से मूलभूत सुविधाएं है जो आवास, भोजन,शिक्षा जैसे क्षेत्रों में है ऐसा ही एक क्षेत्र वंचितों का सुधार भी है। ये जरूर है कि 1990 में कश्मीर से आये लोगो को अपने ही देश मे शरणार्थी होना पड़ा जो दुखद है। उनको वे सुविधाएं भी नही मिली जो उन्हें मिलना चाहिए था। ये जिम्मेदारी सरकारो की है और किसी भी सरकार ने पिछले 32 सालो में उनके दर्द को नही समझ पाए। फिल्में केवल तात्कालिक सोच देती है।समस्या को पहुँचा सकती है, हल भी बता सकती है लेकिन सीख लेता कौन है। सारी फिल्मो में बुराई हारते दिखती है।असत्य पर सत्य की जीत हम देखते ही ही है। हम रावण के हश्र से आज तक सीख न सके। राम - सीता, कृष्ण जैसे विराट व्यक्तित्व से हम पुत्र, भाई भाभी नही बन सके । दिल्ली के बर्बर सामूहिक बलात्कार जैसी घटना के बाद लाख सुधार के बाद भी ऐसी घटनाएं घट रही है तो फिल्मो को केवल तात्कालिक माना जाना चाहिए। इनसे हमे कोई विषय मिल सकता है, विचार के लिए लेकिन विमर्श? इन रातो का कोई सवेरा नही है।


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