जयपुर: 'स्वतंत्रता पूर्व और बाद की भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका' पर सेमिनार संम्पन्न

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राजीव गांधी स्टडी सर्कल और कनोडिया गर्ल्स कालेज के संयुक्त तत्वावधान में कनोडिया कालेज सभागार में हुये "स्वतंत्रता पूर्व और बाद की भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका" विषयक सेमिनार में वक्ताओं ने कहा कि महात्मा गांधी के युग की जनाधारवादी, नैतिक एवं सत्याग्रह आधारित संघर्षात्मक एवं रचनात्मक जनान्दोलन की राजनीति ने देश की राजनीति में महिलाओं की व्यापक सक्रिय भागीदारी का द्वार खोला और उत्कर्ष प्रदान किया। आजादी के बाद भी अनेक महिलाओं के राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय महत्वयुक्त नेतृत्व को उभार मिला, लेकिन महिला राजनीतिक भागीदारी के जितना ज्यादा विकास की उम्मीद नये संवैधानिक गणतंत्र में की गई थी, उतने अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। इस दिशा में आन्दोलनों के सहारे ही और बेहतर परिणाम संभव हैं, जिसकी लोकतांत्रिक प्रवृतियों को सुनियोजित ढंग से दबाया एवं कुचला जा रहा है।

 सेमिनार का शुभारम्भ करते हुए तकनीकी शिक्षा एवं आयुर्वेद मंत्री डा. सुभाष गर्ग ने कहा कि राजनीति के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी महिला नेतृत्व का उल्लेखनीय विकास हुआ, किंतु उस राह में बाधक सामाजिक कट्टरपन के संस्कारों को तोड़ने में और सामाजिक साहस जरूरी है। राजनीति में महिलाओं का ज्यादा भागीदारी से राजनीतिक क्षेत्र में शुचिता, नैतिकता और अनुशासन को और रचनात्मक प्रेरणा मिलेगी। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता बालिकाओं को हतोत्साहित करने की जगह उन्हें उत्प्रेरित करने एवं आत्मबल प्रदान करने वाले संस्कार दें।

 अध्यक्षीय सम्बोधन में राजीव गांधी स्टडी सर्कल के प्रभारी राष्ट्रीय समन्वयक एवं महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर डा. सतीश कुमार राय ने कहा कि स्वतंत्रता संघर्ष के गांधी युग ने जहां महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को उत्तेजित किया, वहीं आजादी के बाद संविधान ने समान राजनीतिक अधिकार देने की क्रांति को अंजाम दिया। 80 के दशक में स्थानीय स्वशासन की संवैधानिक रूप लेने वाली संस्थाओं में महिला प्रतिनिधित्व आरक्षण की पहल दूसरी बड़ी क्रांति थी। उससे महिला नेतृत्व विकास का नया दौर आया। उसमें अभी कमियां हो सकती हैं, लेकिन भागीदारी सिखाती है और परिपक्व नेतृत्व संभावनायें पुष्ट होती हैं।

 राजस्थान विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री पूर्व आचार्य प्रो. राजीव गुप्ता ने कहाकि गांधी और नेहरू के साथ कस्तूरबा और कमला नेहरू ही नहीं, उस दौर की राजनीति में सक्रिय संघर्षात्मक भूमिका निभाने वाली महिला नेतृत्व की एक बड़ी जमात थी, जिसका योगदान भुला नहीं जा सकता है। बाद में भी कई नारीवादी आंदोलनों ने महिला अधिकारों के विधिक एवं राजनीतिक सुधारों में महनीय भूमिका निभाई। 

 विषय संस्थापक व्याख्यानकर्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ी इतिहासवाद् एवं आरजीएससी दिल्ली समन्वयक डा. चयनिका उनियाल ने गांधी से सत्याग्रह आन्दोलनों के साथ साथ उसके पूर्ववर्ती राजनीति आन्दोलनों और क्रांतिकारी आन्दोलनों में भारतीय महिलाओं की महत्तम भूमिका को अनेक दृष्टांतों के साथ विश्लेषित किया।

   राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष प्रो.लाड कुमारी जैन, ने राजस्थान के नारीवादी सक्रिय राजनीतिक आन्दोलनों की गहन चर्चा के साथ अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक संदर्भों उनके महत्व और प्रभाव पर प्रकाश डाला। 

    कनोडिया कालेज निदेशक प्रो.रश्मि चतुर्वेदी ने कहाकि राजनीति में महिलाओं की भूमिका के विकास में हम दुनिया के तमाम देशों से काफी पीछे हैं, यद्यपि हमने इन्दिरा गांधी सहित कद्दावर महिला नेतृत्व की एक प्रशस्त कड़ी अपने लोकतंत्र में अर्जित की है।

    सेमिनार के उद्देश्यों पर प्रकाश डालने तथा धन्यवाद ज्ञापन की भूमिका सेमिनार संयोजक तथा राजस्थान विश्वविद्यालय आरजीएससी समन्वयक प्रो.निमाली सिंह ने किया। स्वागत आरजीएससी राज्य समन्वयक डा. बनय सिंह एवं कालेज प्राचार्या डा. सीमा अग्रवाल ने किया। संचालन किया डा.ऋचा चतुर्वेदी एवं डा.धर्मा यादव ने। सेमिनार में प्रो. दिलीप सिंह, प्रो.विनोद शर्मा, डा.सी.एल. मीणा, डा. ध्यान सिंह गोठवाल, प्रो. ओम महला, प्रो.ओ.पी.शर्मा, प्रो.प्रकाश शर्मा, प्रो. अरविन्द सिंह सहित राजस्थान विश्वविद्यालय तथा कनोडिया कालेज के शिक्षक एवं बड़ी संख्या में कालेज की छात्राए शामिल थे ।


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