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बद्रीनाथ,केदारनाथ, गंगोत्री, मदुरै और रामेश्वरम यात्रा
लेखक- संजय दुबे

यात्रा तन की होती है और मन की भी होती है, मस्तिष्क की भी होती है। यात्रा भौतिक होती है और आध्यात्मिक भी होती है। यात्रा सुविधाजनक भी होती है असुविधाजनक भी होती है। जाने के समय सुख की यात्रा होती है तो आने के समय दुख की भी यात्रा होती है लेकिन सबसे बड़ा सुकून होता है अपने घर वापस आने का। ऐसी ही सम्वेत यात्रा हमने भी की। हमारे परिवार के लिए सबसे अच्छी बात ये है कि कोई भी कार्यक्रम में परिवर्तन का विरोध नही करता, जो जैसा कह दे, मान लेते है, इस कारण आकस्मिक परिवर्तन से क्षणिक नाराजगी होती भी है तो वह खत्म भी हो जाती है। बहरहाल दो महीने से उधेड़बुन के बाद ये तो तय हो गया कि हिमालय के विशाल उचाईयों पर स्थित चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ,गंगोत्री,यमनोत्री की आध्यात्मिक- धार्मिक यात्रा पर जाना है। उम्र के हिसाब से सभी 50 पार थे इस कारण निरंतरता के बजाय टुकड़े टुकड़े यात्रा को प्राथमिकता दी गयी। एक उम्र के बाद थकान जीवन का हिस्सा बनती है। मेरा अपना मानना है कि 40 से 45 आयु के बीच इन स्थानों की यात्रा ज्यादा उत्साहजनक होगी क्योंकि उम्र के साथ ऊर्जा की कमी स्वाभाविक प्रक्रिया है। हमारी यात्रा की शुरुआत रायपुर से दिल्ली के बाद दिल्ली से पूर्व से बुक कराए गए टेम्पोट्रेक्स से होने वाली थी ।दिल्ली में एडवांस राशि लेने के बाद आमतौर पर सुविधा देने से मुकरने का रिवाज है इस कारण दिल्ली से बचा जाए या फिर किसी सस्ते होटल पर रुक कर लंबी यात्रा के लिए वाहन को देखभाल करने के बाद फाइनल करे। पहाड़ी क्षेत्र में रात के 7 बजे के बाद यात्रा न करने की सलाह शासकीय तौर पर है , पहाड़ी रास्तो पर औसतन 20 -22 किलोमीटर / घंटे वाहन चल पाते है। इस कारण जहाँ की भी यात्रा करे।सुबह जल्दी निकल जाए।
4 मई2022 को हम लोगो ने दिल्ली से ऋषिकेश की लगभग 263 किलोमीटर की यात्रा 07 घण्टे में पूरी की। एक सलाह है कि ऑनलाइन होटल बुकिंग में ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री का मतलब मुख्य ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री,यमनोत्री नही होता बल्कि इनसे 25 -30 किलोमीटर दूर होटल भी होते है। इस कारण ऑनलाइन बुकिंग से पहले इनके कस्टमर सर्विस वालो से बात करने के बाद संतुष्ट होने पर ही बुकिंग करे। एक बेहतर विकल्प ये है कि होटल वालो के contect नेट पर रहता है उनसे सीधे बात करे, मोल भाव करे फायदे में रहेंगे। ऑनलाइन जिस होटल का रेट 2500 बताया जा रहा था वहां हमे 1600 में रूम मिला।
पहला पड़ाव- ऋषिकेश
हमारी यात्रा का पहला पड़ाव ऋषिकेश था, यहां हम ऑनलाइन बुकिंग के कारण ऋषिकेश मुख्य शहर में न रुक कर 28 किलोमीटर दूर काटेज में रुके। जो लोग एकांत चाहते है उनके लिए काटेज, टेंट नया अनुभव है।ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला मरम्मत कार्य के कारण बन्द था। ऋषिकेश में गंगा आरती शाम 7 बजे होती है, बेहतर है कि 6 बजे पहुँच जाए तो सामने बैठकर आरती देख सकते है। यहां सहयोग राशि 350 /-परिवार की भी सुविधा है जिसे देकर आप आरती में शामिल हो सकते है। संस्था आपको एक छोटी आरती देकर आरती में शामिल करती है। ऋषिकेश में 9 और 16 किलोमीटर की गंगा में राफ्टिंग एक रोमांचकारी खेल है। जो लोग पानी मे जोखिम मोल ले सकते हैं वे बिल्कुल न चूके।इसकी टिकट लगभग 2250 रुपये / व्यक्ति है। ऋषिकेश से लगभग 23 किलोमीटर दूर नीलकंठ का मंदिर है। यही पर शिव ने विष वमन किया था।
दूसरा पड़ाव
ऋषिकेश में 2 दिन रुकने के बाद 6 मई 2022 को हमारी यात्रा जोशीमठ जो 251 किलोमीटर दूर है, के लिए शुरू हुई। लगभग 10 घण्टे में हम लोग जोशीमठ पहुँचे। रात हम लोगो ने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के द्वारा प्रदाय आवास में गुजारी और सुबह 6 बजे जोशीमठ में प्राचीन कल्पवृक्ष सहित प्रथम शंकराचार्य जी के द्वारा जिस गुफा में तपस्या की थी उसे देख कर बद्रीनाथ के लिए रवाना हो गए। जोशीमठ से बद्रीनाथ मात्र 45 किलोमीटर है लेकिन रास्ता इतना घुमावदार है कि वाहन की गति बहुत धीमी हो जाती है। 8 तारीख को बद्रीनाथ का पट खुलने वाला था। जोशीमठ के नरसिंह मंदिर से बद्री विशाल की मूर्ति वापस जाती है। ये सौभाग्य हमे मिला कि उस जत्थे में हम लोग भी शामिल हुए। हम लोग 7 मई 2022 के दोपहर में बद्रीनाथ पहुंच गए। पहाड़ो के बीच स्थित इस तपोभूमि की सुंदरता का वर्णन किया जाना कठिन है। जिधर निगाह डालो ऊंचे ऊंचे पहाड़ सर उठाये खड़े है। उनपर बर्फ की परतें चढ़ी हुई थी। बद्रीनाथ में हमे एक नया होटल 2000 प्रति व्यक्ति के हिसाब से मिल गया था। वैसे अनेक धर्मशाला, छोटे होटल यहां उपलब्ध है। जिनके मोबाइल नंबर नेट पर उपलब्ध है। बद्रीनाथ में जब हम लोग पहुँचे तो हल्की गर्मी थी लेकिन 2 घण्टे में ही पहाड़ो के शीर्ष पर बर्फ जमने लगी और मौसम ठंडा हो गया। स्वेटर पहनने पर ठीक लगा। यहां पर नर और नारायण(अर्जुन - कृष्ण) नाम के दो पहाड़ है, कहा जाता है दोनो ने यहां पर कड़ी तपस्या की थी। यहां एक तप्त कुंड भी है जहां हमेशा गर्म पानीस्नान के लिए उपलब्ध रहता है। बद्रीनाथ मुख्यतः शिव की नगरी मानी जाती है। यहां पर व
विष्णु ने बाल रूप रख जिद कर पार्वती से स्थान प्राप्त किया था। तब से ये बद्री विशाल हो गया।। धर्म का परोपकार से अनन्य जुड़ाव है। बद्रीनाथ में अलग अलग संस्था लंगर सुविधा उपलब्ध कराती है। उत्तर प्रदेश के एक शहर के लोगो ने लंगर लगाया था। पूड़ी,सब्जी,दाल, चाँवल, मीठा सभी उपलब्ध था ।हमने लंगर में ही खाना खाया।आप भी जब जाए आपको कोई न कोई संस्था लंगर जरूर उपलब्ध कराएगी,ऐसी आशा है। बद्रीनाथ से 5 किलोमीटर दूर माणा गावँ है। ये भारत का अंतिम गावँ है। इस गावँ की कुवारी कन्या भेड़ के बाल से कम्बल बनाती है जिसपर घी लगाकर बद्रीनाथ के पट बन्द होने पर भीतर रखा जाता है।। इसी गावँ में गणेश और व्यास मंदिर है।व्यास गुफा के ऊपर परतदार पत्थर ऐसा प्रतीत होता है मानो तालपत्र रखे हुए है। जहां पर महाभारत का लेखन कार्य हुआ था। यही पर सरस्वती का उद्गम और अंत भी है। बमुश्किल 200 मीटर बहकर भागीरथी में विलीन हो जाती है। ऐसा बताया गया कि जब वेद व्यास महाभारत लिखवा रहे थे तब सरस्वती नदी के तेज प्रवाह के कारण व्यवधान हो रहा था। व्यास के शांत रहने का अनुरोध की अवहेलना किये जाने पर सरस्वती को 200 मीटर दूर विलीन कर दिया गया। सरस्वती के उद्गम के पास एक विशाल शिला है जिसे द्रौपदी को नदी पार करने के लिए भीम ने रखा था, इस शिला में भीम के उंगलियों के निशान है। माणा गावँ की जड़ी बूटी प्रसिद्ध है। भारत की आखिर चाय की दुकान यही है। हमने अपने देश की आखिर चाय के दुकान में चाय पीने का आनंद लिया। लगभग 3 किलोमीटर के व्यास वाले माणा गावँ से 15किलोमीटर आगे तपोवन है जहां से पांडव ने स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी।माणा गावँ से वापस आकर हम लोगो ने स्काउट के द्वारा आयोजित लंगर में रात का खाना खाया
8 मई 2022 को बद्रीनाथ का पट खुलना था सो हम लोग रात 3 बजे उठकर स्नान आदि के बाद मंदिर के समीप पहुँच गए। बीते रात से श्रद्धालुओं की कतार लगभग 4 किलोमीटर रही होगी। हम लोग किसी तरह से छोटे केदार में शिव दर्शन किये। ऐसी परम्परा है कि पहले केदारनाथ दर्शन किया जाए फिर बद्रीनाथ दर्शन करें। ऐसा संभव न हो तो बद्रीनाथ मंदिर की दाई और छोटा केदार मंदिर है वहा क्षमा याचना कर दर्शन किया जा सकता है।हमने भी ऐसा ही किया। मंत्रोच्चार और मिलिट्री बेंड के साथ सुबह 6.15 बजे पट खुलने का नयनाभिराम दृश्य हमने देखा। अद्भुत क्षण था। अभी भी ये दृश्य आंखों के सामने घूमता है। लगभग 2 बजे हम लोग बद्री विशाल का दर्शन कर पाए। बद्रीनाथ में नारदकुंड भी है जहां से शंकराचार्य जी ने बद्री विशाल की मूर्ति को निकाल कर स्थापित किया था। बद्रीनाथ में ऑनलाइन दर्शन की सुविधा है जिसे जाने से पहले योजनाबद्ध तरीके से कराया जाकर लाइन से बचा जा सकता है। बद्रीनाथ में आप आत्मा से महसूस कर सकते हैं कि हिन्दू धर्म मे आध्यात्मिक शक्ति कितनी है।देश दुनिया से लाखों लोग यहां एक पल के दर्शन के लिए कठिन रास्ता तय कर यहां आते है।


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