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गंगा उतरी याने गंगोत्री
लेखक - संजय दुबे
गंगा आये कहां से गंगा जाए कहाँ, ये गीत सालो से सुनते आए है तब इसका उत्तर बनाते थे कि गंगा गौमुख से गंगासागर जाती है।इस पावन गंगा और इसकी सहयोगी नदियों के विपरीत हम लोग ऋषिकेश से चलते चलते केदारनाथ की यात्रा पूर्ण किये।
केदारनाथ की यात्रा वास्तव में कठिन यात्रा है इस कारण थकान का ये आलम था कि एक कदम भी आगे रखना दुश्वार हो गया था। जैसे तैसे बस में सवार होकर 70 किलोमीटर दूर रुद्रप्रयाग में रुकने के अलावा कोई और विकल्प शेष नही था। 70 किलोमीटर की यात्रा में भी 4 घण्टे लग गए। रात 11 बज चुके थे बामुश्किल एक होटल मिला। छोटे चारधाम यात्रा में इतनी भीड़ थी कि होटल खाली नही मिल रहे है। बामुश्किल एक होटल मिला तो ऐसे पसरे कि कब सुबह हुई पता ही नही चला। अगर आप अपनी यात्रा में अकस्मात परिवर्तन करते है तो कठनाई के लिए तैयार रहिये। पहाड़ी एरिया में सीमित नाश्ते के रूप मैगी,आलू के पराठे, पूरी साग(भाजी),पनीर ही मिलता है। वैष्णव भोजनालय जगह जगह मिलते है। यही नाश्ते को हम लोग 15 दिन तक उपभोग करते रहे। रूद्र प्रयाग से अगले दिन हमारी यात्रा गंगोत्री के लिए प्रारम्भ हुई। हम लोग गंगोत्री से लगभग35 किलोमीटर पहले हर्षिल को अपना मुकाम बनाया था यहां काटेज की व्यवस्था थी। भागीरथी के किनारे इस जगह में देवदार के पेड़ों के बीच काटेज बहुत ही खूबसूरत थे। चारो तरफ पहाड़ो के बीच, मिलिट्री केम्प के पीछे ये जगह स्वर्ग के समान ही था। रूम में बिच्छू जरूर निकला जो जंगली क्षेत्र में शायद स्वाभाविक ही होगा लेकिन सतर्कता जरूरी है। हर्षिल से गंगोत्री की हमारी यात्रा अगले दिन आरम्भ हुई। हम लोग दोपहर का खाना खाकर गंगोत्री के लिए एक घण्टे की यात्रा के बाद पहुँचे।इस छोटी यात्रा में घुमावदार रास्ते के साथ साथ, लंबे पेड़, और बगल से बहती भगीरथी को देखना आंखों को सुकून देता है। गंगोत्री मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर पहले से पैदल जाना होता है। मंदिर के पहले बाजार पड़ता है जहां से आप गंगा जल भरने के लिए छोटे से बड़े बर्तन मिलते है। यदि आप अपने परिवारजनों, मित्रो,शुभचिंतकों को गंगाजल देंने की मंशा रखते है तो यहां व्यवस्था है। गंगोत्री से लगभग 15 किलोमीटर दूर गौमुख है जहां से भागीरथी के रूप में गंगा बहती है और गंगोत्री में भगीरथ ने तपस्या कर देवनदी को धरती पर लाये थे। गंगोत्री में भगीरथ शिला है जिसपर भगीरथ ने तपस्या किया था। गंगोत्री में माँ गंगा का मंदिर है जिन्हें अक्षय तृतीया को खोला जाता है और दीवाली में बंद होता है। इस मंदिर में भीड़ नही मिली और सुकून से दर्शन हुए ।भागीरथी सके तेज बहाव से हमने जल भरा गंगा पूजन किया। एक घण्टे की अवधि में गंगोत्री में धारा का प्रवाह और जल स्तर बढ़ गया था। शाम की गंगा आरती में शामिल हुए।भजन गाये और पावन भूमि पर खुद के होने के लिए माँ गंगा का आभार माना। गंगोत्री में अनेक होटल, धर्मशाला की व्यवस्था है साथ ही यहाँ भोजन की व्यवस्था बद्रीनाथ ,केदारनाथ से बेहतर है लेकिन आलू की मजबूरी है। पहाड़ी क्षेत्र का मुख्य उत्पादन आलू ही है।
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