रामेश्वरम याने राम ईश्वरम

लेखक - संजय दुबे

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एक तरफ पहाड़ और घुमावदार रास्तो के अलावा कल कल बहती अलकनंदा, भागीरथी और गंगा के लिए विख्यात उत्तराखंड के देवभूमि में भगवान शंकर ,बद्रीविशाल, और गंगोत्री के बाद 4 छोटे धाम की अंतिम कड़ी में यमनोत्री की ओर जाना था हमने गंगोत्री में जल भरते समय चिंतन किया कि क्यो न धर्म के अनुसार गया गंगोत्री का जल रामेश्वरम में चढ़ाने की परम्परा को मूर्त रूप दे दिया जाये। चिंतन, योजना और योजना मूर्त रूप में बदलने में समय नही लगा और ये तय हुआ कि अब देहरादून और फिर जो भी आगे सुविधा मिले उससे रामेश्वरम पहुँचा जाए। सुबह 7.15 पर हम हर्षिल से देहरादून के लिए रवानगी डाल चुके थे। उत्तरकाशी होते हुए टिहरी को एक तरफ छोड़ते हुए ऊंचाइयों के शीर्ष पर एक बार फिर सफर हुआ। 20 किलोमीटर का सफर 1 घण्टे में हो रहा था ऐसा लग रहा था कि हम देहरादून समय पर नही पहुँच पाएंगे। 1 घण्टा शेष था और 34 किलोमीटर का रास्ता शेष था। इतने में ते।टेंपोट्रेक्स के सामने के चक्के का एक परत खुल गया। आनन फानन चक्का बदला तो 45 मिनट और 34 किलोमीटर की यात्रा शेष थी। 5.15 बज चुके थे। इंडिगो में रिकवेस्ट डाले कि ऐसी घटना हो गयी है तो उन्होने 6 बजे तक का समय दिया। एयरपोर्ट के रास्ते मे जाम और 2 जगह रास्ता भूलने के कारण 6.15 पर एयरपोर्ट पहुँचे।तब तक विकल्प में फ्लॉइट न मिलने की स्थिति में टेम्पोट्रेक्स से ही दिल्ली जाने का विचार बना चुके थे। शुक्र है कि फ्लॉईट 25 मिनट देर से आई और ईश्वर ने हमारा साथ दिया। अगले दिन हम लोग दिल्ली से उड़कर सुबह 10 बजे मदुरै पहुँच गए। मीनाक्षी मंदिर से 20 मीटर की दूरी पर होटल मिल गया।

 सेव् के राज्य और धोती के पहनावे के अलावा नदी पहाड़, आलू के पराठे, मैगी के क्षेत्र से सीधे नारियल, लुंगी, समुद्र, इडली दोसा, रस्सम के क्षेत्र में पहुँच गए थे। उत्तर से दक्षिण आना सचमुच पलट संस्कृति का अनुपम उदाहरण था।

एक दिन हमारे पास आराम का दिन था। 12 दिन लगातार सफर की थकान मदुरे में ही आराम पाई शाम 5 बजे हम लोग गाइड के साथ मीनाक्षी मंदिर चले गए। 3 घण्टे तक मंदिर के भीतर, बाहर की निर्माण कला को निहारते रहे। विशेष पूजा किये और वापस आ गए क्योकि अगले दिन सुबह से रामेश्वरम जाना था।

  सुबह 5 बजे हम लोग टेम्पोट्रेक्स से 145 किलोमीटर दूर रामेश्वरम के लिए रवाना हो गए। जैसे जैसे रामेश्वरम के करीब आते जा रहे थे राम याद आने लगे थे, यही अंतिम जगह थी जहां समुद्र ने रास्ता नही दिया था तब अपने जीवन के संयमित काल मे राम ने क्रोधित होकर लक्ष्मण को धनुष बाण लाने के लिए कहा था ताकि उद्दंड समुद्र को सीख दी जा सके। हम समुद्र के किनारे किनारे चल रहे थे, समुद्र में बना रेल्वे पुल भी देखे।

रामेश्वरम पहुँच कर सबसे पहले हमने गाइड लिया क्योकि अंजान क्षेत्र में जानकर आदमी रख लेना सुविधा जनक होता है। गाइड ने सभी को समुद्र में स्नान करवा कर रामनाथम मंदिर में ले गया। 15 एकड़ क्षेत्र में विस्तारित मंदिर में 4 द्वार है। मंदिर 145 खम्बो पर अवस्थित है इस मंदिर के पत्थर लंका से लाये गए है मंदिर के भीतर 22 तीर्थ कुंड है जिन्हे भगवान राम ने रावण वध के बाद ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिए शिव की पूजा करने से पहले निर्मित किया था। आश्चर्य की बात ये है कि समुद्र से 500 फीट के दूरी पर इन 22 कुंड का पानी खारा नही है और हर कुंड के पानी का स्वाद अलग अलग है। यहां टिकट कटा कर स्न्नान करना बेहतर था सो हमने भी यही किया। इन 22 कुंड का नाम है- माधव,ब्रह्महत्या, विमोचन,शंख,गायत्री, गवम,गंगा, चक्र, महालक्ष्मी, गवाक्ष,यमुना, अमृत व्यापी,अग्नि,नल,गया,शिव, अगस्त्य, नील, सूर्य,सरस्वती, सर्व,गंधमादन,चंद्र,सावित्री, और कोटि,। इनमें स्नान करने के बाद मंदिर के बाहर गंगोत्री से लाये जल का पूजन किया गया और मंदिर के भीतर के पुजारियों ने रामेश्वरम के मंदिर के भीतर रेत से बने ज्योतिर्लिंग के सामने से अभिषेक कराया। दियो की रोशनी में अद्भुत नजारा था। दक्षिण के किसी भी मंदिर में कृत्रिम रोशनी का उपयोग गर्भगृह में नही किया जाता है। हमारे द्वारा गंगोत्री से लाये जल से हमने पंडितो के माध्यम से लिंग का स्न्नान देखना आत्मीयता की अनुभूति थी। रामेश्वरम , चार तीर्थो में से एक है। हम लोग द्वारका,जगन्नाथपुरी, बद्रीनाथ पूर्व में पूर्ण कर चुके थे ,रामेश्वरम के साथ ही धर्म की परिपूर्ति हो गई। 12 ज्योतिर्लिंग में से 9 के दर्शन हो गए है। 3 शेष है, आगे जैसी प्रभु की इक्छा. ॐ नमो शिवाय।


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