घरेलू झंझट
लेखक - संजय दुबे
शायद ही ऐसा घर होगा जहां माता पिता, भाई बहन, बेटा बेटी सहित रिश्तेदारों या फिर साथियों में झंझट न होती हो। बात व्यवस्था की हो या अव्यवस्था की, बात असहमति की हो या अपने पक्ष को रखने की, झंझट हो जाती है।
झंझट का सीधा सीधा अर्थ निकाले तो अस्थाई नाराजगी है जो कुछ समय के लिए होती है और अंततः समय बीत जाने के बाद झंझट खत्म हो जाती है और फिर सब कुछ पूर्ववत चलने लगता है।
इस दुनियां में सबसे ज्यादा झंझट अगर होती है तो वह पति पत्नी के बीच होती है और जब झंझट बढ़ती है तो दायरे में दोनों के परिवार के सदस्य आने लगते है। एक दूसरे की कमजोरी को याद कर कर के गिनाने का मौसम झंझट के दौरान आता है। झंझट में पूर्ववर्ती विषयो पर मतभेद भी उकेरे जाते है। दरअसल किसी विषय पर एक पक्ष की उम्मीद पर दूसरे पक्ष के द्वारा उम्मीद अनुसार काम नही किये जाने के कारण ही झंझट खड़ी होती है। झंझट का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष पति होता है जो पत्नी के मापदंडों पर खरा नही उतरता है। ये बात पत्नी के लिए भी लागू होती है लेकिन प्रतिशत देखे तो पति 60 पत्नी 40 का होता है। पत्नी के लिए झंझट का विषय घरेलू काम मे पति का असहयोगके साथ पति के रिश्तेदारों के ताने होते है तो पति की अपेक्षा में खरा नहीं उतरने के चलते पति झंझट करता है। इसमें बच्चों के देखभाल से लेकर खाने की गुणवत्ता सहित पत्नी का मायके के प्रति झुकाव होता है। इन कारणों से घर के बर्तन बजते है।
आमतौर पर झंझट में आवाज़ का आवेग बढ़ते जाता है लेकिन इतना भी नही कि उन लोगो तक पहुँच जाए जिनको बाद में स्वाद मिल जाये। झंझट के लिए समय खोजा जाता है और जब सही समय मिलता है तो खरी खोटी सुनाई जाती है जिसका काउंटर भी होता है। उग्र शिकायत को झंझट का एक रूप माना गया है जो ज्यादातर पत्नी के द्वारा रिश्तेदारों के समक्ष की जाती है, ये झंझट के पहले और बाद का भी विषय हो सकता है।
ज्यादातर झंझट पति के द्वारा किये गए काम होते है जो कि अपेक्षाकृत वैसे नही होते है जैसे होने चाहिए। उदाहरण के लिए आम लाने की बात को ले तो आम लाने पर उसके वजन, मूल्य, उसके आकार से लेकर उसके मीठेपन का मूल्यांकन घर मे होता है । एक भी मामले में चूक का मतलब झँझट होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में आम के बारे में जानकर न होने से लेकर दूसरे विषय का जुड़ाव होते जाता है परिणामस्वरूप झंझट बढ़ने लगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि झंझट को टालना है तो जिस काम को किया जाना है उसमें 100 फीसदी ध्यान लगाइए। झंझट होने को संभावना कम हो जाएगी। ये भी ध्यान रखा जाए कि जो कमी हो वही बताया जाए। तुमसे तो कोई काम हो ही नही सकता, जैसा वाक्य न कहा जाए तो झंझट की संभावना कम रहेगी। एक कमजोरी होती है झंझट के दौर में तुलना जरूर की जाती है जिसमे एक तरीके से किसी को ऊपर उठाकर किसी को गिराना होता है, ये बात अगर न हो तो झंझट की तीव्रता कम हो सकती है।
बहुत दिनों से ये विषय अंतर्मन में उमड़ रहा था, आज लिखने की कोशिश किया हूं।
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