भारत के राष्ट्रपति- अब तक केवल 5 महिला ही दावेदार

लेखक - संजय दुबे

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यू तो दुनियां में महिलाओं को मातृसत्तात्मक परिवार के टूटने के बाद पुरुषसत्तात्मक परिवार के स्थापित होने के बाद पीछे धकेलने की परंपरा का निर्वाह बढ़ते गया। लोकतांत्रिक व्यवस्था आने पर भी उन्हें मताधिकार भी बहुत बाद में मिला। इसके बावजूद वे समानता की लड़ाई लड़ती रही। आगे आने की कोशिश करती रही उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी ताकि संविधान में मिले समानता के अधिकार को बराबरी से पा सके।

 देश मे संविधान लागू होने के बाद 1952 से राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव व्यवस्था की शुरुआत भी हो गयी लेकिन प्रतिभा पाटिल के पहले तक महिला उम्मीदवारी पर गम्भीरता से मनन नही हुआ।

 ये जरूर रहा कि महिला राष्ट्रपति बनने से पहले कुल जमा 3 महिलाओं ने राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भरा। पहली दो महिलाओं ने एक प्रस्तावक एक समर्थक की अनिवार्यता का लाभ उठाते हुए नामांकन दाखिल कर दिया ।ये दोनों महिलाएं पक्ष या विपक्ष की प्रत्याशी न होकर स्वतंत्र उम्मीदवार थी। 1967 में पहली महिला मनोहरा होल्कर राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में खड़ी हुई उनको किसी भी मतदाता ने मत नही दिया।1969 गुरुचरण कौर जो जिंद की रहने वाली थी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ी हुई। उनको केवल 960 मत प्राप्त हुए।

2002 में विपक्ष ने ए पी जे कलाम के खिलाफ आज़ाद हिंद फौज की महिला विंग की प्रमुख लक्ष्मी सहगल को प्रत्याशी बनाया गया उन्हें 1.07.366 मत प्राप्त हुए। 2007 में सत्तारूढ़ पार्टी के तरफ से प्रतिभा पाटिल को उम्मीदवार घोषित किया गया। उन्होंने भैरो सिंह शेखावत को पराजित किया।प्रतिभा पाटिल को 6.38.116 मत प्राप्त हुए। वे देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनी। 2017 में विपक्ष की तरफ से मीरा कुमार को प्रत्याशी बनाया गया वे रामनाथ कोविंद से पराजित हो गयी। मीरा कुमार को रामनाथ कोविंद के 7.02.0440 के विरूद्ध केवल 3.67.314 मत प्राप्त हुए। इस प्रकार 1952 से लेकर 2017 तक 5 महिलाओं ने दावेदारी की किंतु केवल प्रतिभा पाटिल ही जीत पाई है।


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