जब राष्ट्रपति की तनख्वाह कम हो गयी!
लेखक - संजय दुबे
भारत का प्रथम नागरिक राष्ट्रपति को माना जाता है। वे संवैधानिक प्रमुख होने के साथ साथ देश के तीनों सेना के कमांडर माने जाते है। उनके हस्ताक्षर के बिना संसद द्वारा प्रस्तुत विधेयक कानून का दर्जा प्राप्त नही कर सकता है। इसके चलते 1952 से लेकर 2018 तक राष्ट्रपति का वेतन देश मे किसी भी अधिकारी या निर्वाचित पद पर आसीन जनप्रतिनिधियों से अधिक रहा।
संविधान की द्वितीय अनुसूची में राष्ट्रपति के वेतन, भत्ते के संबंध में व्यवस्था है। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद से लेकर नीलम संजीव रेड्डी को मासिक वेतन 10 हज़ार रुपये एवम 15हजार रुपये भत्ता मिलता था। 1985 में पहली बार राष्ट्रपति के वेतन को 10हज़ार से बढ़ा कर 15हज़ार और भत्ता 20हजार कर दिया गया। ज्ञानी जैल सिंह, को बढ़ा हुआ वेतन मिला।1989 में राष्ट्रपति का वेतन 20हज़ार कर भत्ता घटा कर 10हज़ार कर दिया गया वेंकटरमन और शंकरदयाल शर्मा को ये लाभ मिला । 1998 में वेतन तो 20हज़ार ही रहा लेकिन भत्ता 50हजार कर दिया गया। के आर नारायण को ये लाभ मिला। 2008 में भारत के राष्ट्रपति का वेतन 1 लाख 50हज़ार कर दिया गया। प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी को ये बढ़ा हुआ वेतन मिला। 2017 में देश मे सातवे वेतनमान लागू होने के कारण देश के कैबिनेट सचिव( मुख्य सचिव) का वेतन 2.50 लाख रुपये कर दिया गया जिसके कारण देश के राष्ट्रपति का वेतन(1.50 लाख) कम हो गया था, जो कि पद के अनुरूप नही था इस कारण राष्ट्रपति का वेतन 5 लाख एवम भत्ता अलग से कर दिया गया। रामनाथ कोविंद 5 लाख वेतन पाने वाले राष्ट्रपति है।
वर्तमान में राष्ट्रपति के सेवानिवृत्त हो जाने पर 1.5 लाख रुपए पेंशन,30 हज़ार जीवन साथी को, एक सर्वसुविधायुक्त viii टाइप मकान, 2 लेंड लाइन, एक मोबाइल, 5 निजी कर्मचारी सहित एक अन्य व्यक्ति के साथ हवाई जहाज अथवा ट्रैन में मुफ्त सफर की सुविधा दी जाती है।
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