शिक्षक राष्ट्रपति-राधाकृष्णन
लेखक - संजय दुबे
भारत के दूसरे राष्ट्रपति , देश के पहले उपराष्ट्रपति बनने से पहले दर्शन शास्त्र के प्रध्यापक थे। भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का गम्भीर अध्ययन करने के बाद वे प्राध्यापक के रूप में छात्रों के बीच वे बहुत लोकप्रिय थे। उनका मानना था कि शिक्षक उन्ही लोगो को बनना चाहिए जो छात्रों से आदर और स्नेह अर्जित कर सके। वे शिक्षक बनने के लिए ब बुद्धिमान होने केज़ात योग्यता को भी अनिवार्य मानते थे। जो शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित न हो, शिक्षा को मिशन न माने वह अच्छा शिक्षक नही हो सकता है। उनके शिक्षक होने की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वे मैसूर यूनिवर्सिटी से कलकत्ता यूनिवर्सिटी पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो मैसूर यूनिवर्सिटी के छात्रों ने बग्घी को फूलों से सजा कर राधाकृष्णन को रेल्वे स्टेशन तक छोडने गए।
क्रिस्टियन लोगो के द्वारा भारतीय आध्यात्म और संस्कृति की आलोचना किये जाने पर उन्होंने तर्क पूर्ण ढंग से बाते रखी। इंडियन फिलॉसफीकल कांग्रेस की स्थापना की।
जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक था । वे मानते थे कि छोटे से जीवन मे व्याप्त खुशिया अनंत है। इसलिए हमेशा खुश रहना चाहिए। उन्होंने शिक्षकों के सम्मान के लिए अपना जन्मदिन उन्हें समर्पित कर दिया। देश हर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाता है तो इसका श्रेय शिक्षक राष्ट्रपति को जाता है।
प्रेरक प्रसंग:- राधाकृष्णन अपने देश मे आथित्य की भावना को आदर देते थे साथ ही अतीत को भी समझते थे। 1962 मे ग्रीस के राजा भारत आये तो राधाकृष्णन ने कहा कि भारत में आमंत्रण में आने वाले आप पहले व्यक्ति है। इससे पहले सिकंदर बिना आमंत्रण के यहां आए थे ।उनका हश्र बुरा हुआ था।
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