मजदूर राष्ट्रपति व्ही व्ही गिरी

लेखक - संजय दुबे

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1969 में हुए राष्ट्रपति चुनाव अपने आप मे अनोखा चुनाव था। इसके पहले के चुनाव में सत्तारूढ़ दल के द्वारा नामांकित व्यक्ति ही राष्ट्रपति बनता था परंतु कांग्रेस के द्वारा अधिकृत प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को निर्दलीय प्रत्याशी व्ही व्ही गिरी से हार मिली। ये चुनाव अंतरात्मा की आवाज़ का चुनाव था। बहरहाल उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनने की परम्परा की हैट्रिक लगी और गिरी इस क्रम के तीसरी कड़ी बने।

 गिरी मूलतः श्रमिक आंदोलन की उपज थे। वे मद्रास और नागपुर के रेल्वे मजदूर ट्रेड यूनियन के संस्थापक थे। उनसे शोषण सहा नही जाता था देश की पहली सरकार में उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया था। सरकार में रह कर वे श्रमिकों के लिए प्रयासरत रहे लेकिन 1957 में वे चुनाव हार गए। उन्हें उत्तरप्रदेश के राज्यपाल बनाया गया, आगे चलकर वे केरल के राज्यपाल बने जहां देश में पहली निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया गया था। तब केरल में नम्बूदिरीपाद की कम्युनिस्ट सरकार थी। उन्हें कर्नाटक के भी राज्यपाल बनाया गया ।वे सत्ता और संवैधानिक पद में समान रूप से कार्य किये।जिसका फायदा उन्हें राष्ट्रपति के रूप में मिला। वे निर्दलीय होने के साथ साथ सबसे कम वोट से जीतने वाले रास्ट्रपति है। उनका रिकार्ड अब तक कोई नहीं तोड़ पाया है।


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