गुरु पूर्णिमा
लेखक - संजय दुबे
भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता का स्थान सर्वोपरि है। वेद पुराण का अध्धयन और अध्यापन संसार के लिए कौतूहल का विषय रहा है। इस देश के महान ऋषि मुनियों ने श्रवण के माध्यम से आदिकाल में ग्रहण किये गए हर विषय को अपने आने वाले पीढ़ी को हस्तांतरित किया है। ये शिक्षा गुरुकुल के माध्यम से आधुनिक काल मे आगे बढ़ती गयी। संस्कृत भाषा और सरल अवधि के साथ साथ अन्य अनेक भाषाओं मे सभी विषयो का अध्धयन और अध्यापन की सतत प्रक्रिया जारी है। इस प्रक्रिया में गुरु औऱ शिष्य की परंपरा भी अनवरत काल से प्रचलन में है। आज दुनियां में हॉस्टल संस्कृति पनपी हुई है वह हमारे गुरुकुल की देन है। फर्क इतना है कि तब लकड़ी से लेकर अनाज की व्यवस्था शिष्यों को करनी पड़ती थी। बड़े बड़े राजा महाराजा के पुत्रों ने भी ये काम गुरुकुल में किया है।
यूं तो गुरु का दर्जा हर किसी को नहीं दिया जा सकता है लेकिन विद्यालय/ महाविद्यालय सहित कोचिंग सेंटर के अध्यापक गुरु का दर्जा पा जाते है सच तो ये है कि जो व्यक्ति विवेक सीखा दे वह गुरु होता है । विवेक की महत्ता हर विषय मे है क्योकि सामर्थ्य का गुण इससे ही मिलता है। कला संगीत के क्षेत्र में गुरु परंपरा का सर्वाधिक महत्व है। गुरु को स्मृत किये बग़ैर कोई भी साधना का प्रदर्शन पूर्ण नही माना जाता है।
वेद व्यास का जन्मदिन, आज ही के दिन हुआ था। महाभारत ग्रंथ को गणेश के माध्यम से बद्रीनाथ के पास एक गुफा में लिखवाने का कार्य उनकी महान देन है। व्यास को ही आदि गुरु माना गया है। आप अगर गणेश है तो अवश्य ही व्यास आपको तलाश ओर तराश लेंगे।
गुरु पूर्णिमा की आध्यात्मिक बधाई
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