कहां कहां से गुजर गया सिनेमा
लेखक - संजय दुबे
भारतीय फिल्म का इतिहास अभी अपने 110 वे साल की तरफ बढ़ रहा है। हरिश्चंद्र देश की पहली मूक फिल्म थी तब से लेकर अब तक फिल्मों के श्वेत श्याम से गेवाकलर होते हुए फिल्में ईस्टमैन कलर हुई। बेजुबान सिनेमा गूंगा होने के बाद सवाक हो गया। फिल्मों के विषय जो आरंभिक दौर में ज्यादातर धर्मिक हुआ करते थे या सामाजिक नौटंकी हुआ करते थे वे यथार्थ होने लगे। स्थिर कैमरे की जगह घूमता हुआ कैमरा आ गया। स्टील कैमरा जो एक जगह स्थिर रहता वह देश दुनियां में घूमने उड़ने लगा।
गायन में नाक के भार गाने वालो की
जगह सामान्य गायन ने स्थान लिया। सुगम संगीत के साथ पाश्चात्य प्रकार का गायन आया। संगीत में भारतीय वाद्य यंत्रों के स्थान पर पश्चिम के वाद्य यंत्रों ने जगह बनाई। वायलिन के बिना संगीत अधूरा माना जाता था। मुखड़े से अंतरे के बीच के गेप को वायलिन ही विकल्प था। ए आर रहमान ने वायलिन के बिना संगीत देकर नए क्रांति का ईजाद कर दिया। गायन में कुछ गायक गायिकाओं का एकाधिकार छूटा। गायन शैली में भी बदलाव आया। पश्चिमी गायकी में क्लब के गाने आये। नायकत्व का दौर चलते रहा इसमे भी बदलाव आया। चॉकलेटी नायकों के साथ साथ ऊंचे, साधारण चेहरे वाले नायक आये। करिश्माई टाइप्ड भूमिकाओं में बंधने से बाहर निकले। दिलीप कुमार, राजकुमार, अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर ने अपनी दूसरी पारी भी बखूबी निभाने का साहस किया। नायिकाएं जरूर भद्द मोटी और उम्रदराज़ के स्थान पर कम उम्र की युवतियों ने पैर जमाये। खलनायक जो धार्मिक फिल्मों में राक्षक होते थे वे सामाजिक फिल्मों में रिश्तेदार होते होते डाकू, तस्कर, फिर पुलिस, नेता भी खलनायक होने लगे।पहले के फिल्मों में कॉमेडियन अनिवार्य हुआ करते थे उनको नायकों ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। फिल्मों के बनावट में आश्चर्यजनक परिवर्तन दिखा। देश के स्थान पर विदेश में शूटिंग बढ़ने लगी। अब तो भव्यता ही सब कुछ है। संजय लीला भंसाली ने देवदास फिल्म बनाई तो विषय पुराना था।उन्होंने भव्य बना दिया। आगे चल कर रोबोटिक बॉडी का दौर आ गया। साधारण कद काठी का नायक आर्टिफिशियल कपड़े पहनकर बलशाली दिखने लगे। कम्प्यूटर के प्रवेश ने क्रांति ला दिया। बाहुबली, आर आर आर इसके उदाहरण है।कलाकार जो एक जमाने मे प्रोडक्शन हाउस में वेतन भोगी हुआ करते थे उनका पारिश्रमिक का स्वरूप बदल गया। अब तो करोड़ो में भुगतान लेने का दौर है। बदलाव के दौर में फिल्म दिखाने का समय जरूर कम हो गया। पहले ढाई -तीन घण्टे की फिल्में हुआ करती थी। संगम और मेरा नाम जोकर फिल्म में दो इंटरवल हुए लेकिन अब ढेड़ घण्टे की फिल्में आ रही है।
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