अपरंपरागत आवाज़ याने भूपेंदर

लेखक - संजय दुबे

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पहले गजल फिर फिल्मों में गीत गाने का काम लगभग हर गजल गायक ने किया है। भारत मे एक दौर ये भी आया था जब गजल गायक फिल्मी गाना गाने वालो से ऊपर निकल गए थे। इसका अच्छा परिणाम ये भी मिला कि गजल गायकों को फिल्मी गाना भी गाने का अवसर मिलने लगा।

गुलज़ार साहब यकीनन नए प्रकार के रचनाधर्मिता रखते थे। लीक से हट कर लिखना और फिर आवाज़ खोजना उनकी खासियत थी। यही कारण है कि उन्होंने अपने कुछ गीत गाने के लिए गजल गायक भूपेंदर को खोजा। भूपेंदर की आवाज़ गायकी के हिसाब से मोटी आवाज़ थी। ऐसी आवाज़ रोमांस को नही गा सकती हां ऐसे प्रयोग के रूप में अख्तियार की जा सकती है जो फिल्म कलाकार के लिए जरूरी बन जाये। मौसम और घरौंदा फिल्म के गीत चाहे दिल ढूंढता है फिर वही हो या एक अकेला इस शहर में रात में या दोपहर में, सुनेंगे तो भूपेंदर की आवाज़ का नशा भी महसूस करेंगे।

 भूपेंदर ने गजलों की दुनियां के साथ साथ सुगम गीत के एल्बम में आये थे। अपनी पत्नी मिताली मुखर्जी के साथ वे जोड़ी बनाये। वे परंपरावादी गायक नही थे इस कारण उनको उनके गाये गीत कभी किसी को मुक्कमल जहाँ नही मिलता जैसा परिणाम मिला लेकिन व उनको याद रखने के लिए उनके गाये गाने पर्याप्त है। मेरी आवाज ही पहचान है गीत को लता ने गाया तो भूपेंदर भी गाया। फिल्म एतराज़ में सुरेश ओबेरॉय को गजल गायक बनाया गया तो भूपेंदर ही उनके पार्श्व बने। किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है गजल को सुनेंगे तो आप भूपेंदर की आवाज़ के जादू को महसूस कर पाएंगे। कल भूपेंदर चले गए, लेकिन भले ही दुनियां उनका नाम भूल जाये, चेहरा याद न रख पाए लेकिन आवाज़- इसे कोई नही भूल पायेगा।


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