मुर्मू होने का मर्म
लेखक - संजय दुबे
आदि शब्द का अर्थ पुरातन से है यानी चिरकाल कह लीजिये या दिर्घकाल कह लीजिये कहने का मतलब हज़ारो साल भी है, ऐसे अवधि से प्राकृतिक अंचल जिसमे नदी, पहाड़, जंगल, शामिल है उन स्थानों के आसपास वास करने वाले आदिवासी कहलाये। आदिवासी सदियों तक शहरी सभ्यता से दूर रहे या रखे गए ये बात बहस की नही है लेकिन अपनी छोटी मोटी आवश्यकताओं के लिए प्रकृति के भरोसे रहने वालों की संतुष्टि की अपनी जुदा दुनियां है। वे मूल कन्द और जंगल मे उगने वाले वनस्पति से अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति में वे भरोसेमंद रहे। उन्हें बाहरी दुनियां से ज्यादा सरोकार नही रहा इसी कारण वे आदिवासी है। बाहरी दुनियां के लिए वे कौतूहल के विषय है क्योंकि उनकी न समझ आने वाली दुनियां लोगो को आकर्षित करती है। उनका समाज,संस्कृति, खान पान, वेशभूषा भाषा सभी शहरी सभ्यता से परे है।यहां तक की उनके भगवान भी।
उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने की संवैधानिक व्यवस्था है। उनके जनप्रतिनिधि देश के संसद और विधान सभाओं में है। उनके लिए सुरक्षित व्यवस्था है जो अनिवार्य है इसी अनिवार्यता के लाभ और हानि भी है जिसका आंकलन होते रहता है और होते रहना भी चाहिए क्योंकि बेहतरी के लिए चिंतन मनन आवश्यक है।
देश की संवैधानिक व्यवस्था में देश का प्रथम नागरिक राष्ट्रपति को माना गया है। वे तीनों सेना के कमांडर है साथ ही साथ विधेयकों को कानून के रूप में परिवर्तित करने वाले हस्ताक्षर अधिकारी है। कानून द्वारा दी गयी अधिकतम सज़ा फांसी के लिए वे दया की अंतिम उम्मीद है। कल देश के 15 वे राष्ट्रपति का अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के तहत चयन हुआ। उड़ीसा के एक ऐसे गावँ जहां आज भी बुनियादी सुविधा की तलब है उस गावँ -माहूलडीहा से देश की पहली आदिवासी महिला द्रोपदी मुर्मू प्रतिनिधित्व करती है। देश मे अक्सर आधी आबादी के न्यायसंगत प्रतिनिधित्व की बाते होती रहती है। उन्हें बराबरी के साथ खड़े किए जाने के लिए केवल हमारा देश ही नही बल्कि सारी दुनियां जवाबदेही है। लोकतंत्र में मतदान का अधिकार सबसे पहले न्यूजीलैंड( 1893) में मिलना ये दर्शाता है कि किसी समय मे मातृसत्तात्मक परिवार की व्यवस्था को कितने सुनियोजित ढंग से पीछे किया गया था। बहरहाल आवश्यकता अविष्कार की जननी माना गया है। आवश्यकता कैसी है इसके बजाय अविष्कार क्या हुआ ये मायने रखता है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ , मैं भी लड़की हूं लड़ सकती हूँ जैसे सशक्त नारो के देश मे 12 पुरुषों में केवल दूसरी महिला के रूप में वे देश की प्रथम नागरिक बन गयी है याने आधी आबादी का पूरा जश्न।
देश मे महिलाएं निरंतर शिक्षा के क्षेत्र में धूम मचाई हुई है। शैक्षणिक हो या रोजगार के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा में वे अग्रणी बनी हुई है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के हिसाब से रहे ये निश्चित रूप से देश की प्रथम महिला के जेहन में होगा। साथ ही वे गावँ से आती है। साढ़े पांच लाख गावं, में से लगभग एक लाख तीस हजार गावं आदिवासी समुदाय के है। आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने के बाद प्रशासन तंत्र का ध्यान ज्यादा जाए- ये द्रोपदी मुर्मू तय कर ले तो आने वाले 5 साल में तस्वीर कुछ और ही होगी। देश के राष्ट्रपति का संवैधानिक कार्य तो पुस्तको में विहित है लेकिन उनको जनता का राष्ट्रपति कहा जा रहा है तो वे 340 कमरों के विशाल राष्ट्रपति भवन से निकल कर जनता के लिए भी नई परम्परा बनाने का साहस रखेंगी।
हम उनसे क्या सीख सकते है!
आपदा, परिवार समाज, नगर ,राज्य, देश दुनियां की हिस्सा है। आपदा बिन बुलाए मेहमान है अगर आ जाये तो दुख का अवसर न मान उसे बदलने की कला सीखा जा सकता है।
देश गौरवान्वित है।
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