शतरंज और दिलचस्प बातें
लेखक - संजय दुबे
आज से पल्लव राजाओं के द्वारा आठवी शताब्दी में बनाये गए नगर महाबलीपुरम जिसे अब ममलेश्वरम के नाम से जाना जाता है, में 44 वी चेम्पियनशिप शुरू हो गयी है।
64 काले सफेद खानों और 32 काले सफेद मोहरे के बीच शह और मात के खेल को सौ फीसदी दिमागी खेल माना जाता है। माना तो ये जाता है कि शतरंज खेल को रावण की पत्नी मंदोदरी ने किया था क्योंकि रावण के युद्ध के प्रति लत को छुड़ाना चाहती थी।
प्रामाणिक रूप से गुप्तकाल में ये खेल सेना के चार अंग पैदल, हाथी, घोड़ा, ऊंट के साथ राजा और मंत्री ( वजीर) का है इसे चतुरंग के नाम से जाना जाता था, इस खेल में सामने वाले राजा को मारना नही है बल्कि असहाय कर देना है, जिसे आत्म समर्पण (चेक मेट) कहते है।
हर खिलाड़ी के लिए अलग अलग मोहरे महत्वपूर्ण होते है लेकिन सामान्य शतरंज खेलने वाले वजीर बचाने के फेर में रहता है वही दूसरे खिलाड़ी घोड़ा बचाते है। बहरहाल शतरंज के सामान्य ज्ञान में अपने पैदल मोहरों को विपक्षी के अंतिम खाने में पहुँचा कर वजीर बनाना होता है। भारतीय पद्धति के खेल में जिस घर पर मोहरा पहुँचता था वही बनता था लेकिन अब अंतरास्ट्रीय नियम में केवल वजीर बनता है। 1500 वी शताब्दी तक वजीर भी तिरछा चलता था बाद में सीधा चलने का प्रचलन शुरू हुआ।
महाबलीपुरम में आज से शुरू हुए स्पर्धा में संसार के उत्कृष्ट शतरंज खिलाड़ी चाल पर चाल चलेंगे। साथ ही स्पर्धा के खत्म होते तक आपका ज्ञान हम बढ़ाते चलेंगे
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