एक तो "मुंशी", फिर "प्रेम" ऊपर से 'चंद'

लेखक - संजय दुबे

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धनपत राय अपने बचपन मे कम से कम ये तो नही जानते रहे होंगे कि उनको, उनके इस दुनियां से रुखसत होने के बाद मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाएगा। अंग्रेजो के द्वारा उनके घर पर पड़े छापे के बाद उन्हें सलाह मिली थी कि लेखन की दुनियां में बने रहने के लिए धनपत से प्रेमचंद बनना पड़ेगा। उन्होंने इस सलाह को माना और प्रेमचंद बन गए ताजिंदगी और जिंदगी के बाद भी।

 प्रेमचंद बनने के बाद भी वे शिक्षा जगत से जुड़े रहे और शिक्षण का कार्य करते रहे। इसके बाद बचे समय मे लेखन करते। लघु कथा, कहानी, निबंध,उपन्यास, नाटक बाल कहानी, पटकथा याने गद्य के क्षेत्र में कुछ भी नही बचा था लिखने के लिए। सोचता हूं तब के जमाने मे पेन के रूप में होल्डर ओर दवात हुआ करती थी, याने लिखने में समय ही समय लगता था। तब प्रेमचंद लिखे और अद्भुद लिखे। प्रेमा,वरदान, रंगभूमि, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि सहित गोदान उनके अमर लेखन है जिसे जब भी पढो आप कल्पनालोक में खो जाएंगे लेकिन दिखेगा आपको यथार्थ ही। 

  वे उर्दू मदरसे से हिंदी के विद्यार्थी बने थे सो दो भाषा मे उनका अधिकार था- सशक्त। अक्सर कहा जाता है कि हर व्यक्ति अपने युग का बच्चा होता है। अपने आसपास के वातावरण में ही उसकी समझ बढ़ती है। श्रमिक शोषण, महिलाओं का उत्पीड़न, समाज मे भेदभाव जैसे विषय पर प्रेमचंद की समझ सहज थी, उन्होंने देखा और भोगा हुआ सच को परोसा। यही कारण था कि वे आम आदमी के लेखक हुए।

 फिल्में , तब के जमाने मे मनोरंजन का अनिवार्य माध्यम बनने की प्रक्रिया में रेंगना शुरू किया था। प्रेमचंद भी अछूते नहीं रहे। वे भी अजंता सिने टोन प्रोडक्शन कंपनी में 8000 रुपये सालाना वेतनकर्मी बने। "मजदूर" फिल्म की पटकथा भी लिखी लेकिन समझ गए कि ये दुनियां दूसरी है। वे लौट आये। उन्होंने लिखा था साहित्य के भावों की उच्चता, प्रौढ़ता, स्पष्टता और सुंदरता होती है उसका फिल्मी दुनिया से कोई सरोकार नही है। वे केवल पैसा कमाना चाहते है जिसके लिए मनुष्य के निम्न आचरण को महिमा मंडित करने का शौक रखते थे। सिनेमा और साहित्य तभी एक हो सकते है जब रुचि परिस्कृत होगी। ये उनकी पीड़ा थी जब उन्होंने उनकी कथानक पर बनीफिल्म -" सेवा सदन" को देखा था। बहरहाल रंगभूमि,गोदान, गबन, दो बीघा जमीन, शतरंज के खिलाड़ी, कफ़न और छत्तीसगढ़ की भूमि में बने "सद्गति" उनकी ही रचना का फिल्मी संस्करण रहे लेकिन लेखन की दुनियां का "प्रेम" फिल्मों में "चंद" ही रहा।

 मुंशी प्रेमचंद, आज ही के दिन जन्मे थे धनपत राय बन कर, नवाब राय बन कर लिखे, प्रेमचंद बन के लिखे लेकिन आम आदमी के लिए सरल लिखे, अपने जमाने के संवेदनशील मुद्दों को उन्होंने शब्दो मे उकेरा।

अमर हो गए।

सम्मान? शब्दो के धनी लोगो को ये समझना होगा कि ये कैसे मिलता है।


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