फिल्म और बहिष्कार

लेखक - संजय दुबे

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भारत की अधिकांश जनसंख्या के पास अब तो मनोरंजन के अनेकानेक विकल्प आ गए है। कोरोना के चलते मनोरंजन का मुख्य साधन सिनेमा हॉल से फिल्में भी निकल कर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखने लगी है। अब केवल हिंदी फिल्म ही मनोरंजन का इकलौता साधन नही रह गयी है। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने से 2005 से बहुत बड़ा तबका जिसे हिंदी कठिन लगने लगी है वे अब मनोरंजन के लिए हिंदी के बजाय अंग्रेजी भाषा की फिल्में(गाना रहित) और धारावाहिक देखना पसंद करते है। इसके बावजूद हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी फिल्में देखने वालों की संख्या बहुत है जो किसी फिल्म को100 करोड़ की आय वाले क्लब से लेकर चार अंको की संख्या तक आय दिला सकते है। हाल ही दक्षिण की फिल्में इस बात का प्रमाण है कि दमदार कहानी, अभिनय, और भव्यता हो तो धूम मच सकता है।

 हिंदी फिल्मकार पिछले एक साल में केवल एक फिल्म - कश्मीर फाइल्स और भूल भुलैया -2 ही दे पाए है जो 100 करोड़ पार पहुँची है अन्यथा सारे बड़े कलाकारों की फिल्में बॉक्स ऑफिस में बंटाधार हो रही है। इसके अलावा भी कुछ फिल्मों का विरोध हो रहा है जिसका कारण उनके द्वारा विपरीत परिस्थितियों में की गई टिप्पणी के साथ साथ कथनी और करनी में फर्क है। उन कलाकारों को सभी जानते है।

  वर्तमान परिस्थितियों में सोशल मीडिया के चलते किसी भी बात के समर्थन और विरोध की हवा को गति पकड़ते देर नही लगती। अब लाल सिंह चड्ढा फिल्म के लिए भी ऐसी बाते उठ रही है। विरोध के पक्ष में फिल्म पी के और पूर्व में किरण राव के द्वारा कही गयी बातों का हवाला है।

 फिल्म के कलाकारों से दर्शकों का एक मानसिक संबंध होता है। अभिनय की सशक्तता के चलते चरित्र में जीने वाले कलाकार अपना स्थान और मुरीद बना लेते है। आजकल की भाषा मे ये फेंस फॉलोइंग कहलाता है। ऐसे कलाकार जब किन्ही कारणों से विवाद में पड़ जाते है तो विरोध मुखर होने लगता है। आम तौर पर जनमानस को प्रभावित करनेवाले लोग ऐसे समय पर क्यो प्रतिक्रियात्मक हो जाते है ये समझ से परे है। बहरहाल लाल सिंह चड्ढा के विरोध में पी के फिल्म के बहुत सारे दृश्य सोशल मीडिया में घूम रहे है। एक बात जेहन में आती है कि पी के फिल्म विदु विनोद चोपड़ा द्वारा प्रोडयूस है, राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित और राजकुमार हिरानी और अभिजीत घोष द्वारा लिखित पटकथा पर बनी फिल्म है। इनके द्वारा ही सारे दृश्य लिखे और फिल्मांकित किये गए है।ऐसे में विरोध का असली हक़दार कौन है? ये भी तय होना चाहिए। कलाकार स्वयं न तो स्क्रिप्ट्स लिखता है नही दृश्य रचता है।

 विवाद कैसे शुरू होता है? एक चित्रकार, एक धर्म विशेष के इष्ट की विद्रूप संरचना करता है, क्यो ? कोई कारण नहीं है लेकिन भावनाये आहत हो जाती है तो निर्वासन भोगना पड़ता है और बहादुर शाह जफर के समान बदनसीब होना पड़ता है। कलाकार हो रचनाकार इनको अपने धर्म के मजे लेना चाहिए अन्यथा प्रतिक्रियात्मक परिस्थितियों में परेशान होना पड़ता है


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