रक्षा का बंधन पर्व

लेखक - संजय दुबे

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हर परिवार में चाहे वह किसी भी धर्म के अनुयायी हो एक रिश्ता खास होता है। माता पिता के बेटे और बेटी जिनका रिश्ता भाई बहन का होता है। इसके अलावा चाचा, मामा, मौसा के बेटे बेटियां भी रिश्ते में भाई बहन होते है। समाज मे बहनों के लिए भाई बड़ा हो छोटा हो पिता के बाद नैतिक रूप से बहनों के लिए पितृ तुल्य ही हो जाते है। यही रक्षा का दायित्व होता है। रक्षा बंधन के त्यौहार का सबसे बड़ा मर्म- रक्षा है।

 इसी रक्षा के लिए वेद युग से ही बंधन के रूप में रक्षा बंधन का पर्व मनते आ रहा है। ईश्वरीय काल मे भी रक्षा बंधन का भी उल्लेख देखने सुनने को मिलता है। राजा बलि से जब विष्णु ने वामन अवतार रख जब साम्राज्य नाप लिया तो बलि ने वर मांग लिया कि आपको सामने रहना होगा। ऐसे में लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांध कर भाई बनाकर विष्णु को मुक्त किया था। शिशुपाल वध के कारण श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त निकलने लगा तो द्रोपदी ने अपने वस्त्र को फाड़कर बांधा था। द्रोपदी की रक्षा कालांतर में श्री कृष्ण ने हमेशा किया। ये दोनों दिन सावन का आखिरी दिन था इस कारण से रक्षा का बंधन पर्व के रूप में मनते आ रहा है।

 सामाजिक ढांचे में भाई बहन के रिश्ते को पावन रिश्ते के रूप में जाना माना जाता है इसके अलावा जिम्मेदारी के हस्तांतरण को सामाजिक रूप से परिष्कृत करने के लिए भी इस बंधन को सामाजिक और धार्मिक रूप में भी स्थापित किया गया। ये त्यौहार, इस कारण भी प्रतिमान रखा क्योकि माता पिता के बाद बहन की सुरक्षा का जिम्मा भाइयो को स्वयमेव हस्तांतरित हो जाये ताकि विवाह के बाद भी बहन का रिश्ता घर से माता पिता के जाने के बाद भी स्थापित रहे।

 बहरहाल, समाज ने कितने ही आधुनिकता के पहनावे बदले लेकिन भाई बहन का रिश्ता आज भी प्रासंगिक है, संवेदना से भरपूर है।

 इसके लिए प्रतीक के रूप में रेशम के धागे या नयेपन के रूप में सोने चांदी से निर्मित राखी का बंधन पर्व में बांधने का रिवाज है।

 रिश्ते, प्रगाढ रहे भले ही राखी बंधे या न बंधे। रही बात रक्षा की तो समाज मे पुरुष के भीतर का भेड़िया कही भी कभी भी जागृत होकर अबोध बालिकाओं को शिकार बना रहे है। यदि समाज ऐसे लोगो से रक्षा कर सके तो साल भर रक्षा बंधन मनाया जाए।


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