जश्न ए जीत या मातम ए हार

लेखक - संजय दुबे

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क्रिकेट की दुनियां में केवल टेस्ट फॉर्मेट में ही बराबरी का मामला ज्यादातर होता है। वन डे या टी20 में बराबरी तभी संभव है जब मौसम पूरा मैच न होने दे। आज एशिया कप के निर्णायक, तो नहीं कह सकते हाँ महत्वपूर्ण जरूर कह सकते है,मैच में भारत का मुकाबला (अतिउत्साही लोग इसे महा - मुकाबला का नाम दे रहे है) पड़ोसी देश पाकिस्तान से है। 

 क्रिकेट विशुद्ध रूप से अन्य खेलों के समान एक खेल है। भारतऔर पाकिस्तान क्रिकेट खेलने वाले स्थापित सभी देशों के साथ टेस्ट, वनडे सहित टी20 खेलते है हारते है जीतते है लेकिन ये दोनों देश एक दूसरे के सामने होते है तो क्रिकेट केवल खेल न होकर प्रतिष्ठा में बदल जाता है। अब प्रतिष्ठा जनमानस की भावनाओ की लगती है तो खिलाड़ियों पर भी दबाव स्वयमेव बनने लगता है। 

         दोनो देशों के बीच 1947 से संबंध सामान्य नहीं रहे है। संप्रभुता के मामले में जब जब पकिस्तान ने अतिउत्साह दिखाया है तब तब उसे मुँह की खानी पड़ी है। इस प्रकार के पराजय से पाकिस्तान के जनमानस में एक प्रकार से खुन्नस है जिसके कारण वे मैदान कोई सा भी हो पराजित नही होना चाहते।ऐसी ही भावना इस तरफ भी है। जिसके चलते साधारण सा मुकाबला महामुकाबला में बदल जाता है।

 दोनो देश कीआज़ादी के बाद दो खेलो में दोनों देश एक दूसरे के सामने खेल के मैदान में हॉकी की स्टिक या क्रिकेट का बेट या दोनो खेलो के बाल लेकर नही उतरते बल्कि गोला बारूद लेकर उतरे दिखते है।हॉकी में अंतरास्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान ने एक तरफ भारत के एकाधिकार को खत्म कर दिया तो एक जमाना ऐसा भी आया कि क्रिकेट में भी पाकिस्तान एक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी बनकर खड़ा हो गया। इसके साथ ही भारत मे बढ़ते आतंकवाद का परोक्ष आरोप पाकिस्तान पर लगा और तब से दोनो देशों के बीच परस्पर देशों में खेल संबंध टूट चुके है। केवल अंतरास्ट्रीय स्पर्धाओं में दोनों एक दूसरे के सामने होते है तो खेल भावना उन्माद में बदलने लगती है।

खेलो को अंतरास्ट्रीय स्तर पर संबंध सुधारक का दर्जा मिला हुआ है। खेल के माध्यम से कडुवाहट कम/ खत्म होती है। दो देशों के संबंध बुरे हो सकते है लेकिन दो देश के खिलाड़ियों के बीच मैदान के बाहर संबंध दोस्ताना होते है। पाकिस्तान के बाबर आज़म भारत के विराट कोहली के प्रशंसक है। पाकिस्तान और भारत के पुराने खिलाड़ियों के बीच आज भी दोस्ताना संबंध है लेकिन मैदान के भीतर नही है।वहां पर केवल और केवल जीत के लिए सारे अच्छे बुरे तरीके अपनाए जाते है।

 मेरा मानना है कि किसी भी खेल में एक न एक तो हारेगा। जीतेगा वही जो बेहतर होगा। दोनो देश के खिलाड़ी आज जी जान लगाने वाले है।उनको दोनो ही स्थितियों में पारिश्रमिक मिलना तय है। लेकिन उनकी जीत पर जश्न और हार पर मातम नही होना चाहिए। खेल के लिए कहा जाता है कि जीतो तो दर्प नहीं और हारो तो शर्म नही। खेल को खेल भावना के साथ देखिये। बनते रन, गिरते विकेट, शानदार फील्डिंग का मजा लीजिये। खेल देखने बैठे है युद्ध नही।


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