ध्यानचंद है लेकिन किसी को ध्यान नहीं है
लेखक - संजय दुबे
इस देश मे 1928 से हॉकी और 1932 से क्रिकेट खेला जा रहा है। आज़ादी के पहले ही भारत ओलम्पिक खेलो में हॉकी में 3 स्वर्ण पदक जीत चुका था। ये सारे पदक ध्यानचंद के अथक प्रयास का परिणाम था। सारी दुनियां ने हमे खेल के नाम पर इस खिलाड़ी के कारण जाना। ध्यानचंद के कारण ही हॉकी राष्ट्रीय खेल बनी। महज़ 4 साल बाद देश मे आये क्रिकेट में हमारी उपलब्धि 1971 में देखने को मिली। ये सुनील गावस्कर युग की शुरुवात थी। यहां से हम क्रिकेट में विदेश में जीतने की शुरुआत किये। 1983 में कपिलदेव ने फिजा ही बदल दी। हॉकी में एस्ट्रोटर्फ क्या आया हम जीतना ही भूल गए। 1980 में मास्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीते लेकिन सारे तगड़े प्रतिद्वंद्वी इसमे शामिल नही थे। क्रिकेट ने अघोषित रूप से राष्ट्रीय खेल का दर्जा पा गया और इस खेल के एक खिलाड़ी, सचिन तेंदुलकर के 200 टेस्ट पूरे होने पर भारत रत्न भी मिल गया जबकि खेल में भारत रत्न बनने का पहला अधिकार ध्यानचंद का था। मेरे ख्याल से ध्यानचंद किसी सत्तारूढ़ दल से प्रभावित नहीं थे, खेल जानते थे, राजनीति नही।खिलाड़ी थे, कूटनीतिज्ञ नही। जब वे दावेदार थे तब भारत रत्न खिलाड़ियों को देने का प्रावधान न था तो मिलता कहां से? सचिन तेंदुलकर के लिए प्रावधान बना दिया गया। अब जब व्यवस्था हो ही गयी थी तो हमारे देश मरणोपरांत सम्मान देने का प्रावधान तो है लेकिन ध्यानचंद पर ध्यान देने वाला कौन है? उनके नाम से खेल रत्न पुरस्कार घोषित कर दिया गया जो पूर्व में राजीव गांधी के नाम पर था। यहां पर भले ही नियत कुछ भी हो लेकिन ध्यानचंद का नाम प्रथम नहीं था बल्कि वे किसी के विकल्प बने, दुखद। जिस खिलाड़ी को हिटलर जैसा तानाशाह अपनी सेना में प्रमोशन देने को तैयार था, विएना(आस्ट्रिया) जहाँ ध्यानचंद की चार हाथ वाली मूर्ति सम्मान में लगी है उस खिलाड़ी के प्रति देश क्यो कृतज्ञता का भाव नही रख पा रहा है?
आज खेल दिवस है, ध्यानचंद जी जन्मदिन है पर देश का ध्यान नहीं है!
About Babuaa
Categories
Contact
0771 403 1313
786 9098 330
babuaa.com@gmail.com
Baijnath Para, Raipur
© Copyright 2019 Babuaa.com All Rights Reserved. Design by: TWS