गणेश चतुर्थी : स्वाधीनता से लेकर कल्पना की पराकष्ठा तक

लेखक - संजय दुबे

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भारतीय संस्कृति में धर्म को कर्म का बुनियाद माना जाता रहा है। धर्म के माध्यम से ईश्वर के प्रति आस्था जनमानस में प्रचारित, प्रसारित होते आया है। देखा जाए तो धर्म ने एकता के सूत्र में बांधने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। हिन्दू धर्म मे न केवल इंसान बल्कि जानवरो को भी पूज्य माना गया है। इसका कारण जानना चाहे तो ये ही समझ मे आता है कि जानवर भी इंसान के सहयोगी ही रहे है। भारतीय दर्शन का ये शानदार उदाहरण है कि सहयोग के प्रतिफल में पूज्य होने का भी अवसर मिलता है। 

  हिन्दू धर्म मे अनेकानेक ईश्वर है। इनमें से ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सर्वश्रेष्ठ ईश्वर माना गया है। महेश याने शिव के एक पुत्र व्यक्ति और जानवर का संयुक्त रूप है। इन्हें गणो का प्रमुख बनाया गया सो गणेश कहलाते है। पूजन में वे सर्वप्रथम है अर्थात मांगलिक कार्य की शुरुआत को भी "श्री गणेश" करिए, कहा जाता है।

  गणेश, धर्म के अनुसार प्रथम पूज्य रहे ही और आदिकाल से धार्मिक कार्य मे प्रथम पूज्य रहे उनके सार्वजनिक होने के पीछे भी जो सच है वो भी अद्भुद है। अंग्रेजो के शासनकाल में संगठित विरोध एक दुश्कर कार्य था। आम जनमानस इसी कारण नेतृत्व खोजती है जो उनके लिए उनकी तरफ से संघर्ष करे। "गीता रहस्य" लिखने वाले केशव गंगाधर तिलक गर्म दल के नेतृत्वकर्ता थे। अंग्रेजो को खदेड़ने के लिए वे शांति के बजाय संघर्ष को प्रथमिकता देते थे। 1894 में उन्होंने आम जनता को संगठित करने के उद्देश्य से सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुवात की। अनेक लोग संस्था बनाकर सार्वजनिक रूप से प्रथम पूज्य गणेश की मूर्ति रखने लगे। इस आयोजन के पीछे जनमानस को एकता के सूत्र में बांध कर अंग्रेजो के खिलाफ संगठित करना था। हिंदुओ के धर्मिक भावनाओं के मर्म को अंग्रेज समझते थे इसका काट भी उन्होंने धर्म को विच्छिन्न करने के लिए जातीय वैमनस्यता को उभारने में दिमाग लगाया और ऐसा बीज बोकर गए जो अमरबेल हो गयी है।

 गणेश का श्री गणेश हुआ और जल्दी ही गणेश महाराष्ट्र से निकल कर देश के कोने कोने में विराजमान हो गए। वे देश को एकता के सूत्र में बांधने वाले बने। देश के आज़ाद होने के बाद गणेश चतुर्थी पर्व के रूप में प्रतिष्ठित होते चले गए। महाराष्ट्र राज्य आज के दौर में भी गणेश चतुर्थी पर्व को भव्य से भव्यतम की ओर ले जा रहा है। आकार में विशालता, रूप और सज्जा में विविधता के साथ सामयिकता के बहुरूप में गणेश स्थापित होते है। महाराष्ट्र के देखादेखी अन्य राज्यो में भी विविधता का प्रसार हो रहा है। 10 दिनों तक चौराहों में आम नागरिक विशेष कर युवा वर्ग प्रथम पूज्य की मूर्ति स्थापित करते है। पितृपक्ष के पूर्व गणेश विदा होते है। इन दस दिनों में अनेकानेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होना मनोरंजन को भी विस्तार देता है। सार्वजनिक रूप से गणेश स्थापित होते ही है अमूमन लगभग हर घर मे भी गणेश की मूर्ति स्थापना और पूजा अर्चना सपरिवार होती है। सचमुच बाल गंगाधर तिलक ने एकता और आज़ादी के लिए अद्भुत कार्य किया जो आज़ादी के बाद भी प्रचलन में है। अब गणेश कल्पना की विविधता के पर्याय भी हो गए है। शायद ही कोई ईश्वर या व्यक्ति के रूप में वे निर्मित नहीं हुए होंगे। शायद ही कोई व्यवसाय होगा जिसके व्यवसायिक के रूप में गणेश को मूर्त नही किया होगा। वे सामयिक भी है , जो भी घटना देश विदेश में घटती है उसके नायक के रूप में गणेश मूर्त हो जाते है। पुष्पा the flower की सफलता में एक संवाद " झुकेगा नहीं" की अभिनय अदायगी के रूप में भी गणेश अवतरित हुए है। ऐसे सहज ईश्वर कोई और है ऐसा मुझे ज्ञात नहीं है।


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