बरेली की बर्फी की मिठास

लेखक - संजय दुबे

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मिमी, एक फिल्म नही थी बल्कि कोख के बाज़ारवाद के कारण संभावित समस्याओं को भी इंगित करती हुई सच्चाई थी। इस फिल्म में एक ऐसी लड़की की कहानी थी जो पैसे के खातिर सेरोगेसी के लिए तैयार होती है और विदेशी जोड़े के भारत से भाग जाने पर खुद संघर्ष करती है। इस लड़की की भूमिका कृति सैनन ने बखूबी निभाई थी। कल वे फिल्म फेयर के घोषित पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बनी है।

 वैसे तो कृति, फिल्मों में आने से पहले मॉडलिंग करती थी अगर अमूल की खट्टी मीठी जिंदगी वाला विज्ञापन याद हो तो,।आठ साल पहले तेलगु फिल्म के माध्यम से बड़े पर्दे पर आई लेकिन हिंदी फिल्मों की व्यापकता के बिना स्वीकृति मिलने कठिन होता है। हीरोपंती के जरिये वे हिंदी सिनेमा में आई लेकिन पहचान मिली "बरेली की बर्फी" से एक उद्दंड लड़की की विद्रोही भूमिका में कृति ने जानदार अभिनय किया था। 

अक्सर हम फिल्मों की अभिनेत्रियों को नैन नक्श के मापदंड से खूबसूरत मानते है लेकिन कृति इस मापदंड से परे है यानी खूबसूरती की अलग परिभाषा है।आम लड़की, जो उन घरों में नही पाई जाती है जहां खूबसूरती होती है बल्कि हर घर मे कृति जैसी लड़की होती है। कृति, आम लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती है इस कारण उनकी स्वीकृति भी है। मिमी फिल्म में उन्हें कठिन किरदार में जीने का मौका मिला तो उन्होंने इसे ऐसा निभाया कि फिल्मों के लिए दी जाने वाली सर्वाधिक प्राचीन और प्रतिष्ठित फिल्म फेयर में सशक्त अभिनेत्रियों के क्रम में पहले पायदान पर आ गयी। कृति के मुकाबले में विद्या बालन, परिणिती चोपड़ा और कियारा आडवाणी थी। माना जा सकता है कृति को तगड़े मुकाबले में पिछले सालो में 3 बार की विजेता विद्या बालन से ही प्रतिद्वंदिता थी। "मिमी" फिल्म ने कृति को ग्लैमर की दुनियां में हकीकत से भी परिचित कराया है ।सचमुच बरेली की बर्फी में मिठास बढ़ गयी है।


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