कहां है खेल भावना
लेखक - संजय दुबे
भारत पाकिस्तान के बीच खेल के मैदान में भले ही खेल चलता रहे लेकिन दर्शकों ( कट्टर) में युद्ध की भावना भरे रहती है। एक देश जीता नही की उन्माद शुरू हो जाता है।
क्या खेल में एक ही का जीतना तय होना चाहिए, उसे हारना ही नही चाहिए? या सामने वाले देश को जीतना ही नहीं चाहिए केवल
हारना चाहिए!
कम से कम भारत और पाकिस्तान के मैच में तो दोनों देश के क्रिकेट प्रेमियों को छोड़िए दोनो देश ऐसे लोग जिन्हें क्रिकेट की सोच समझ भी नही है वे खेल भावना से ऊपर देश प्रेम का सबूत देने लगते है।
हर व्यक्ति को अपने देश सेऔर देश के खिलाड़ियों से प्रेम होना स्वाभाविक है। खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन से जीत देश की जीतने पर गर्व होना चाहिए लेकिन उनके कमजोर प्रदर्शन के कारण उन्हें दोषी नही बनाना चाहिए।
भारत और पाकिस्तान के बीच पहले मैच में भारत जीता पाकिस्तान हारा। दूसरे मैच में पाकिस्तान जीता भारत हारा। अब मैच तो हो नही रहा था युद्ध चल रहा था। निर्णायक मोड़ पर अर्शदीप से महत्वपूर्ण कैच छूट गया भुनेश्वर कुमार के द्वार फेके 19वे ओवर में 19 रन निकले जिसके कारण मैच पाकिस्तान की और चला गया। क्रिकेट खेल में ऐसा कभी नही हुआ कि कैच किसी भी खिलाडी ने न छोड़ा हो और जिसके कारण परिणाम बदल गए हो पर कट्टर लोग चाहे वे किसी भी देश के हो तीव्र प्रतिक्रिया करने में नही चूकते। आजकल भड़ास निकालो प्लेटफार्म है- ट्वीटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सएप,। बस शुरू हो गए। अर्शदीप नवांगतुक है, उसे अभी अंतरास्ट्रीय वातावरण को समझना है।छूट गया कैच, इसके चलते बाते कहां कहां तक चली गई।
मुझे लगता है कि खेल और खिलाड़ियों को खेल भावना के साथ देखना चाहिए तब खेल मनोरंजक हो जाता है लेकिन उसे केवल अपने देश के जीत के रूप में देखेंगे तो ऐसी ही स्थिति आएगी।
वैसे भी 120 बॉल का टी20 किसी भी देश के लिए आसान नही है। मुख्यतः बल्लेबाज़ों का खेल है जिन्हें आड़ा टेढ़ा कुछ भी खेलना है मकसद एक है -रन बने। इसके चक्कर मे क्रिकेट अत्यंत ही गतिमान खेल हो गया है। 175 रन का लक्ष्य कठिन नही है।कम से कम भारत के पिछले 2 मैच तो यही कह रहे है।इसलिये जीत की पूर्व अवधारणा को लेकर मैच मत देखिये। देखिये तो स्वस्थ दर्शक बने न कि कट्टर दर्शक।खेल में जीत है तो हार भी है। साथ ही खिलाड़ियों के प्रति त्वरित रूप से जहर मत उगलिये। वे भी किसी के बेटे बेटी है।पिता है, भाई है।
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