बीते ३२ साल और नई हिंदी

लेखक - संजय दुबे

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कल हिंदी दिवस था, थोक में हिंदी को अपनाने, बढ़ाने,की बात हो रही थी। आक्रोश भी दिखा कि आजादी के अमृत उत्सव के ७५ साल बीत जाने के बाद भी १४ सितम्बर १९४९ को संविधान में घोषित राज की भाषा आज भी राज भाषा नही बन पाई है। एक देश जिसके बहुतेरे राज्यो में हिंदी बोली लिखी पढ़ी जाती हैं और बहुतेरे राज्यो में बोली नही जाती है, पढ़ी नही जाती है वहां भाषाई बैर भी है बावजूद इसके हिंदी की पैठ बढ़ी है। १९९० के पहले के काल को याद करे तो देश मे रोजगार नही के बराबर था। केवल सरकारी नौकरी हुआ करती थी न तो तकनीकी महाविद्यालय की संख्या थी और न ही भर्ती। मैं तब के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्तमंत्री मनमोहन सिंह का आभार मानता हूँ जिन्होंने देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन के द्वार खोले। यही से निजी संस्थानों के आगमन की शुरूवात हुई और कमोबेश आंग्ल भाषा मे शिक्षा का भी आगमन महानगरों से निकल कर गांव गांव में हुआ। 

 बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हिंदीभाषी राज्यो ने मौका नही दिया पनपने का लेकिन महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु ने पलक पावड़े बिछा दिए। ये चारों राज्य में से महाराष्ट्र को छोड़ दे तो बाकी राज्यो की भाषा का चार अक्षर भी समझ आ जाये तो बहुत बड़ी बात होगी लेकिन इन राज्यो के पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई में लाखों रोजगार के अवसर खुले तो यहां हिंदीभाषी राज्यो के ही युवा लाभ उठाएं। 

अब मुख्य मुद्दे पर आता हूँ। हिंदीभाषी लोग जब मराठी,तेलगु, कन्नड़ और तमिल भाषा के क्षेत्र में पहुँचे तो वहां के लोगो को अपने रोजगार को बढ़ाने के लिए हिंदी समझने की जरूरत पड़ी। मेरा अपना अनुभव है कि बहुत पहले मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए श्रीसैलम गया था तो वहां सिर्फ तेलगु भाषा मे जानकारी लिखी थी। हर जगह परेशानी हुई थी भाषा के कारण। इस साल गया तो हिंदी समझने वाले लोग थे, अधिकांश जगह में हिंदी में सूचनाएं लिखी मिली। 

 शुक्र है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने न केवल रोजगार के अवसर खोले बल्कि हिंदी भाषा को भी ऐसे प्रदेशों में विस्तार दिला दिया जहां आज भले ही राजनैतिक आधार पर विरोध होता हो लेकिन भाषा अगर पेट भरने के लिए उपयुक्त है तो उसका प्रसार प्रचार होगा। हममे से बहुतों को ये जानकारी नही होगी कि नरसिम्हा राव जी आंध्रप्रदेश के निवासी थे, महाराष्ट्र में उनकी पढ़ाई हुई थी। वे ६ भाषा के जानकार थे। कम्प्यूटर युग के शुरुवात में वे ६ महीने में कम्प्यूटर में भी पारंगत हो गए थे।

हिंदी के विस्तार के लिए पर भाषा को नीव बनाकर आगे बढ़ाने के लिए उनका आभार।


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