कौन कहता है कि हँसाने वालो में रुलाने की बखत नही होती है?
लेखक - संजय दुबे
उम्मीद के 41 दिन के जद्दोजहद के बाद राजू श्रीवास्तव ने अंततः आज उम्मीद को भी रुलाते हुए इस दुनियां से चले गए। इस एकाकी होते दुनियां में अब के जमाने मे सबसे बड़ा काम लोगो को हँसाना है। रुलाने का ठेका लेने वाले तो मुफ्त में मिलेंगे लेकिन हँसाने वालो की कमी है। मनोरंजन की दुनियां में हास्य को जन्म देने की कला ईश्वर बहुत कम लोगो के भाग्य में रखता है। राजू भी उनमें से एक था। राजू ने दो तीन दशक तक देश के लोगो का भरपूर मनोरंजन किया ।उनके इस कार्य की हमेशा सराहना होगी। रील लाइफ का एक फायदा है कि कुछ बाते हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाती है। भले ही राजू शरीर से ,आवाज़ से, भाव भंगिमा से,हमारे बीच नही है लेकिन उनके द्वारा किया गया प्रदर्शन सुरक्षित है। खुशी देने वाले की दुनियां में दुनियां में शायद गम बहुत बढ़ गया रहा होगा इसी कारण एक हास्य व्यंग्य के प्रस्तुतकर्ता की जरूरत महसूस हो रही होगी सो राजू को बुला लिया। हँसाने वाले जहाँ भी होते है वे रोते को भी हँसा देते है। गजोधर को बड़ी जिमनेदारी मिली है खुदा को हंसाने की पर हमारे यहां तो कमी हो गयी। जाओ राजू ।अलविदा
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