आशा पारेख को मिला दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
लेखक - संजय दुबे
भारत के लोगो मे फिल्म धड़कता है ये बात फिल्मों के शौकीन लोग कहते है। जब से इंटरनेट आया है तो मनोरंजन मोबाइल में सिमट गया है लेकिन दो हज़ार के दशक तक मुख्य मनोरंजन सिनेमा ही था। फिल्मों के माध्यम से दीर्घकाल तक लोगो की असाधारण सेवा करने वालो के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना 1969 में की गई थी । 2021 का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 1959 से1995 तक की नायिका एवम चरित्र अभिनेत्री आशा पारेख को देने का निर्णय लिया गया है।
आशा पारेख को पुराने जमाने के दर्शक आंखों में गहरे काजल के लिए जानते है। आंखों के कोर पर काजल के कारण आंखों पर ही नज़र टिक जाती थी।तब के जमाने मे आंखों में काजल ही मेकअप का प्रमुख आधार होता था। ऐसे ही काजल को आशा पारेख ने अमूमन हर फिल्म में लगाया।
"दिल देखे देखो" फिल्म से आशा पारेख ने फिल्मों में सफलता हासिल करना शुरू किया तब से लेकर "मैं तुलसी तेरे आंगन की" फिल्मों में वे सफल अभिनेत्री रही। नासिर हुसैन की फिल्मों में आशा पारेख का होना लगभग अनिवार्य था। जब प्यार किसी से होता है,तीसरी मंजिल, कारवाँ, बहारों के सपने, फिर वही दिल लाया हूं,में सफलता के झंडे गाड़े। कटी पतंग, आन मिलो सजना,जख्मी, समाधि, मेरा गावँ मेरा देश उनकी प्रमुख फिल्में रही है।
आशा पारेख 52 दादा साहेब फाल्के पुरस्कार जीतने वालो में 6वी महिला है। उनके पहले देविका रानी(1969)कानन देवी,(1976)दुर्गा खोटे(1983)लता मंगेशकर(1989) आशा भोसले(2000) को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। वर्तमान में भारत सरकार की तरफ से दिए जाने वाले इस पुरस्कार में स्वर्ण कमल, शाल एवम 10 लाख रुपये की धनराशि दी जाती है।
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