हर जगह रावण से बड़े अत्याचारी जिंदा है
लेखक - संजय दुबे
कल गली, चौराहे सहित मैदानों में लघु आकार से लेकर मध्यम और ऊंचे रावणो का दहन हुआ। कई स्थानों के पूर्ववर्ती रावणो से और ऊंचा रावण स्थापित हुआ। रावण दहन को देखने हर स्थान पर लोग जुटे। बुराई पर अच्छाई की जीत जो होना था। रावण को जलते देखने वाले व्यक्ति में उस क्षण के लिए भगवान राम समाहित हुए होंगे और जैसे ही रावण का ढांचा भरभरा कर गिरा होगा राम अंर्तध्यान हो गए होंगे कदाचित रावण पुनः अपना वजूद बनाकर साथ घर वापस आ गया । हर साल रावणो के दहन के बाद भी राम का रंग क्यो नही चढ़ पा रहा है ? ये प्रश्न मन को कुरेदे हुए था। मन में ये अंतर्द्वंद्व भी घण्टो चलते रहा कि एक व्यक्ति जिसने ब्राह्मण होने के कारण वेद, पुराण को कंठस्थ किया, पुरोहिती का अद्भुद ज्ञानी होने के साथ साथ शिव तांडव का लेखक रहा। राजकीय कुशाग्रता इतनी थी कि राज्य सोने की लंका कहलाती थी, इस व्यक्ति ने ऐसा कौन सा कृत्य किया जिसके चलते ये बुराई का स्थायी ब्रांड बन गया है। इसका दहन कर देने का अर्थ ही बुराई पर अच्छाई की जीत हो जाना माना जा रहा है। एक ही बुराई दिखी रावण के सम्पूर्ण जीवन मे- ये बुराई थी एक स्त्री के अपहरण का। भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 364 में इस अपराध के प्रमाणित होने पर 7 साल की सज़ा का प्रावधान है। अगर आज की स्थिति में रावण ऐसा किया होता तो।
भारतीय संस्कृति में स्वयं से संबंधित स्त्री जो विभिन रिश्तों में होती है वह सम्मान का प्रतीक होती है।पर स्त्री के प्रति मापदण्ड एकदम बदला हुआ होता है जैसे रावण का था। मैं इस विषय पर चलते चलते देश मे पर स्त्री के साथ हुए अपहरण और इससे कुत्सित अपराध बलात्कार के बीते बरस के आंकड़े पर भी नज़र डाला तो ये ज्ञात हुआ कि देश मे 2021 में 86543 स्त्रियों के अपहरण और 62713 बलात्कार के प्रकरण पुलिस थाने में दर्ज कराई गई है। बलात्कार के मामले में सबसे दुखद पहलू ये भी है कि36069 नाबालिग बच्चियों के साथ ऐसी घटना पुरुषो के द्वारा की गई है। पता नही कितने ऐसे दरिंदे होंगे जिनके ऐसे अपराध की रिपोर्ट इसलिए दर्ज नही होती है क्योंकि परिवार सहित पीड़िता को लोकलाज, भय, और भविष्य की चिंता रहती है स्त्रियों में और उनके परिवार में। बलात्कार को दण्ड सहिंता 1860 की धारा 376 में सज़ा की दृष्टि से अधिकतम मृत्यु दंड के कारण अपहरण से बड़े दर्जे का अपराध माना गया है। भारतीय दंड संहिता की उपरोक्त दो धाराओं से आप समझ सकते है कि रावण का कृत्य बलात्कारियों की तुलना में कम गम्भीर अपराध था। बावजूद इसके सदियों से हर साल बढ़ती ऊंचाई और भीड़ के साथ बढ़ते आयोजन में बुराई का प्रतीक बन जल रहा है।
भारतीय संस्कृति में महिला का स्थान पुरुषो की तुलना में ऊंचा रखा गया है। ज्ञान, शक्ति और अर्थ के लिए हम सरस्वती ,दुर्गा,और लक्ष्मी को पूजते है।अन्न के लिये अन्नपूर्णा तो यज्ञ के लिए गायत्री की आराधना करते है। भूमि को भी स्त्री मानते हुए आराधना करते है लेकिन मानसिकता के मामले में अधिकांश पुरुषो की मानसिकता रावण से गिरी हुई है। सोचते थे कि शिक्षा, और खुलेपन के चलते पुरुषो की नज़र और नजरिया बदलेगी लेकिन कानून में घूरने की समयावधि को दृष्टिगत रखते हुए अपराध की श्रेणी बनाना पड़ गया।विधिवेत्ताओ को ये भी आभास हुआ कि महिलाओं के रोजगार के चलते पुरुषो की कुत्सित बुद्धि नुकसान पहुँचा सकती है सो स्त्रियों के संरक्षण के लिए अनेक संस्था समिति की संरचना करना पड़ा। रावण ने अपहरण किया था तो मर्यादित चरित्र के दायरे में किया था।परिणाम भी भुगतना पड़ा लेकिन ठंडे दिमाग से ये जरूर सोचना चाहिए कि समाज मे यौन असंतुष्ट जमात जो केवल स्त्रियों के प्रति चाल पर चाल बुन रहा है उनका क्या किया जाए? जो लोग रावण से ज्यादा खतरनाक है खासकर नाबालिग बच्चियों को निशाना बनाने वालो का पुतला क्यो न जले। रावण को जलाने से शायद ही बहुतों को अपने चरित्र सुधारने का ज्ञान मिलता होगा।
रावण को हम केवल स्त्री अपहरण का दोषी माने जिसकी सज़ा मृत्यु के रूप में उसे मिल चुकी है। अगले साल से जिन बलात्कारियों को भारत का कानून अपराध का दोषी करार देता है उनके पुतले जलाने का संकल्प कम से कम मैं लेता हूँ।
समाज के हर सदस्य की जिम्मेदारी होना चाहिए कि वे अपने आसपास के रावण से भी ज्यादा खतरनाक लोगो की नज़रे पहचाने। स्त्री की उम्र का लिहाज पुरुष नही करता है। एक अबोध बच्ची से लेकर वृद्ध महिला के प्रति नज़र में खराबी है, मानसिकता कुत्सित है,।नज़रिया खराब है इसलिए स्त्रियां भरोसा किसी पर न करे। रावण ने ये भी सिखाया है कि विभीषण घर मे ही होता है।
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