किसी शायर की ग़ज़ल -ड्रीम गर्ल
लेखक - संजय दुबे
उन्नीस सौ सत्तर के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में पुरानी नायिकाओं का दौर खत्म होने का था साथ ही नायक भी उम्रदराज़ होते जा रहे है, ऐसे में नायक को कम उम्र का दिखाने के लिए कम उम्र की नायिकाओं को लाने का काम शुरू हुआ।राजकपूर सपनो का सौदागर फिल्म के समय 54 साल के हो गए थे उनके लिए दक्षिण भारत की एक नायिका तलाशी गयी जिसकी उम्र 24 साल कम थी। इस नायिका को मुंबई में नए अंदाज में दर्शकों के सामने लाया गया। पूरे मुंबई के बिजली के खम्बो में पोस्टर लगाया गया कि एक नई नायिका आ रही है जो सपने में आने वाली लड़की है। इसे नाम दिया गया - ड्रीम गर्ल। फिल्म का नाम था सपनो का सौदागर। फिल्म तो नही चली लेकिन उत्तर के नायकों के लिए दक्षिण की नायिका के रूप में हेमा मालिनी की गाड़ी चल निकली। हेमा मालिनी की एक खासियत थी कि उन्होंने परिधान के नाम पर कभी भी समझौता नहीं किया। अंग प्रदर्शन के लिए उन्होंने फिल्में छोड़ना बेहतर समझा और उनके इसी आदत के चलते वे तब के बाद से हर बड़े नायक की नायिका बनी। देखा जाए तो हेमा मालिनी दो युग के नायकों के बीच की संधि थी। एक तरफ राजकपूर, देवानंद, राजेन्द्र कुमार, देवानंद, राजकुमार,शम्मी कपूर,मनोज कुमार और शशि कपूर के साथ काम किया तो दूसरी तरफ अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, जितेंद्र, रणधीर कपूर,राजेश खन्ना के साथ भी फिल्में की। उनकी फिल्मों में वे फिलर भी नही हुआ करती थी बल्कि सशक्त भूमिका उनके लिए लिखी गयी। एक फिल्म उनके लिए चयनित उपनाम "ड्रीम गर्ल" भी बनी जिसमे एक गाना भी किसी शायर की ग़ज़ल ड्रीम गर्ल भी लिखा गया। जिस जमाने मे हेमा मालिनी ने फिल्म जगत में प्रवेश किया था तब वास्तव में वे स्वप्न सुंदरी ही थी।
वे लगभग 25 साल तक अपने सफलता के झंडे को गाड़े रखी। आमतौर पर शादी के बाद नायिकाएं दर्शकों के लिए उनकी काल्पनिक अमानत नही रह पाती है लेकिन अभिनय की सशक्तता के चलते हेमा मालिनी बनी रही।
फिल्मों के अलावा हेमा मालिनी को कुशल नृत्यांगना माना जाता है और है,भी। उनका रंगमंच आज भी नही छूटा है। 74 साल की उम्र में वे आज भी सक्रिय है। उनका ये कार्य उनके समर्पण को पुष्ट करता है।
फिल्म कलाकारो को राजनीति में लाना राजैनतिक दलों के लिए आवश्यकता है क्योंकि भारत मे खासकर नायिकाओं का क्रेज़ इतना है कि उनका ग्लैमर सर चढ़ कर बोलता है भारतीय जनता पार्टी ने हेमा मालिनी को अपनी पार्टी से प्रत्याशी बनाया और वे चार बार सांसद निर्वाचित हो चुकी है। 2003 से 2014 तक राज्य सभा सदस्य रही और 2014 और 2019 में वे मथुरा लोकसभा चुनाव में विजयी रही हैं।
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