चक दे इंडिया के शाहरुख

लेखक - संजय दुबे

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अगर हिंदुस्तान में फिल्में न होती तो क्या होता? ये प्रश्न मैं स्वयं से पूछूं तो उत्तर देता- हम अवसाद की जिंदगी में जीते और समय से पहले मर जाते क्योकि फिल्मों ने हमारे दिल को धड़कना सिखाया , हमे जीना सिखाया, हमे बुराइयों पर अच्छाई की जीत दिखाया, समाज का आईना बन कर हमें वो चेहरे दिखाए जो उजाले के मसीहा बने, कल्पना लोक में विचरना सिखाया,

 इस अनवरत यात्रा में नायक से महानायक की संख्या अनंत है लेकिन कुछ नायक ऐसे आये जिन्होंने भूमिकाओं में ऐसी जान डाली कि हम देखते रह गए कि सच है या अभिनय!  

एक कलाकार इनमें से शाहरुख खान भी है जिसने नकारात्मक नायकत्व के साथ "बाज़ीगर" बन कर "डर" का "अंजाम" खड़ा करने की वैसे ही कोशिश की थी जैसे विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर ने किया था।खलनायक बनकर इन कलाकारों ने जगह बनाई फिर नायक बनकर दिलो पर राज भी किया।

 शाहरुख फिल्मों से पहले छोटे पर्दे के धारावाहिक के एक साधारण कलाकार के रूप में आये थे कालांतर वे बड़े पर्दे के बड़े कलाकार बने और दोनो हाथों को फैला कर प्यार करने के नए नए तरीके बनाते गए,सफल होते गए। 

 बॉलीवुड में शाहरुख से पहले किसी भी कलाकार ने अटक कर बोलने की कला को नही अपनाया था लेकिन शाहरुख की ये सवांद अदायगी लोगो को बहुत पसंद आई।

 बॉलीवुड में 30 साल तक टिकना आसान नही होता है । बहुत कम नायक ऐसे हुए है जिनके अभिनय की अवधि इतनी लंबी है। शाहरुख खान खुद ही आज 57 साल के हो गए है। 27 से 57 वर्ष की अवस्था तक शाहरुख को देश विदेश के दर्शकों ने उनके अभिनय के चलते खूब प्यार दिया। यस बॉस,दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे,परदेश, दिल तो पागल है, कारण अर्जुन, मोहब्बतें, कुछ कुछ होता है, मैं हूं ना, वीर जारा, दिल तो पागल है, देवदास,रईस, फिल्में मैंने बड़े सुकून के साथ देखा , आनंद लिया।

हर दर्शक की चाहत की फिल्में अलग अलग होती है। मेरी भी है। मैंने शाहरुख खान के अभिनय के सर्वश्रेष्ठ रूप को "चक दे इंडिया" फिल्म में देखा और आज भी मानता हूँ कि उनके जैसे कलाकार के लिए महिला हॉकी टीम के कोच की भूमिका बहुत ही चुनौती पूर्ण थी। अपने साथ लांछन लिए हुए दाग को धोने के लिए विपरित परिस्थिति में एक कमजोर बटी हुई टीम को एकजुटता सीखा कर जीतने का उन्माद भरने वाली ये फिल्म आज भी देखकर ऊर्जा ले सकते है। इस फिल्म में शाहरुख खान को न तो प्रेम करना था, न ही अटक कर बोलना था और न ही नायिका के साथ गाना गाना था। पूरी फिल्म में गम्भीरता के साथ बस जीना था।यकीन मानिए शाहरुख ने किसी भी जगह निराश नही किया था। भावपूर्ण अभिनय के साथ कोच की भूमिका में शाहरुख खूब जिये। देखा जाए तो कबीर की भूमिका में शाहरुख की मेहनत ने जान डाल दी थी।

आज शाहरुख उम्र के 57 वे पड़ाव पर आ गए है।ये उम्र नए भूमिकाओं के चयन का होता है जहां नायिकाएं आपसे मोहब्बत नहीं कर सकती है आपका साथ दे सकती है। अगर लीक से नही हटे तो दर्शक आपको खारिज़ करने के लिए बैठा ही है।


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