आवारा कुत्ते कितने पालतू !
लेखक - संजय दुबे
सारी दुनियां में जंगल से मनुष्य के साथ निकला एकमात्र पशु कुत्ता ही था जो किसी अन्य पालतू जानवर के समान उपयोगी न होते हुए भी उपयोगी बन गया। आज इंसान से ज्यादा परिवार की सुरक्षा का विश्वसनीय साधन बनते जा रहा है। पा
चौकीदार रखने से कम खर्च पर 24 घण्टे सतर्क ये पशु पालतू होने परआंख का तारा है तो सड़को पर घूमने वाले आवारा कुत्ते आंखों में खटकने वाले भी है। कारण है कि सड़कों पर बेपरवाह दौड़ते है तो वाहन चालक दुर्घटना के शिकार होते है। घायल होने के अलावा कई बार असामयिक मृत्यु भी हो जाती है। लोकसभा में दी गयी जानकारी के अनुसार देश मे डेढ़ करोड़ आवारा कुत्ते है, पालतू का रिकार्ड नही है। किसी भी व्यक्ति को काट ले तो रेबीज़ के इंजेक्शन लगवाना महंगा इलाज है साथ ही डर स्थाई हो जाता है। डेज़ह में 2021 में 77 लाख लोगों को कुत्तो ने काटा है जिसमे से 20 हज़ार लोग रेबीज़ के कारण मरे है।
कुत्ते के रात में भोंकने और रोने से नींद में पड़ने वाली खलल से अधिकांश लोग परेशान रहते है ये समस्या पालतू और आवारा कुत्तों के लिए सामान्य समस्या है।
आज सारी दुनियां में घरों में पालने वाले जानवर में सर्वाधिक संख्या कुत्तों की है। जो कुत्ते घरों में रहते है उन्हें "पालतू" माना जाता हैं।जो कुत्ते घरों में न रहकर महानगर, शहर, नगर ,कस्बों के गली सड़को में रहते है उन्हें "आवारा " का दर्जा मिला हुआ है। आप उन्हें पालतू के विरोधार्थी "फालतू" भी मान सकते है।पालतू कुत्तों को उनके मालिको द्वारा न्यूनतम से लेकर अधिकतम सुविधा अपने आय के आधार पर मुहैया कराई जाती है। सबसे महान कार्य भोजन है।पालतू कुत्तों को मालिक दूध-रोटी, चाँवल से लेकर बाजार में उपलब्ध कुत्तों के भोजन उपलब्ध कराता है। आवारा कुत्तों के लिए पहले तो मोहल्लों का कचरा घर ही।भोजन प्राप्ति की जगह हुआ करती थी जब से देश मे स्वच्छता अभियान शुरू हुआ है आवारा कुत्तों के लिए भोजन समस्या बनते जा रही है। कहते है भगवान एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोल देता है। आवारा कुत्तों के नसीब जगाने में धर्म की भूमिका प्रधान रही है । धर्म के अनुसार पहले भी महाभारत ग्रँथ में महाराज युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग द्वार तक केवल कुत्ता ही गया था सो एक बात ये है कि कुत्तों की सेवा करने से स्वर्ग के द्वार खुलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार काला कुत्ता शनि के ताप को कम कर देता है इसलिए कुत्ते के बजाय काले रंग के कुत्ते को रोटी खिलाना ज्यादा शुभ कार्य माना जाता है। काला रंग आम तौर पर शोक, दुख, विरोध का परिचायक है लेकिन कुत्तों में काला रंग सौभाग्य का प्रतीक है। सारे कुत्ते काले नही होते लेकिन कुत्ते है सो इंसान काले कुत्ते को ज्यादा न खोजकर अन्य रंगों के कुत्तों पर भरोसा कर रोटी(विकल्प के रूप में ब्रेड, बिस्किट, क्योकि घर से रोटी बचने की स्थिति में मिल सकती है लेकिन कुत्ते को खिलाने के प्रयोजन में लफड़े की उम्मीद ज्यादा है) खिलाकर अपनी चिंता को कम कर लेता है। धर्म मे सामंजस्य की सुविधा है तो। आमतौर पर दूसरे घर के पालतू कुत्तों को आम आदमी इंटरटेन नही कर सकता है सो आवारा कुत्ते ही विकल्प शेष बचते है।
ज्यादातर शनि से त्रस्त व्यक्ति अपनी दिनचर्या में भोर होते ही कुत्तों की तलाश में निकल जाते है। जितने जल्दी कुत्ते मिल जाये उतनी जल्दी रोटी, ब्रेड, बिस्किट सहित शनि से भी थोड़ी मुक्ति मिल ही जाती है। कुत्ते भी जानते है कि उनको खिलाने वाले कौन कौन होते है और निठल्ले घूमने वाले कौन होते है। कुत्ते घड़ी देखे बगैर जान लेते है कि चौधरी, तिवारी, खान, गुरुमीत सिंह कब और कहाँ आएंगे। पांच छः कुत्ते ऐसी जगह पर इंतज़ार करते रोजाना दिखेंगे।
जिन मोहल्लों में पालतू कुत्तों के मालिकों की संख्या अधिक है सो स्वाभाविक है कि पालतू कुत्ते भी ज्यादा मिलेंगे। सुबह सुबह ये लोग अपने कुत्तों को जंजीर में बांध कर एक हाथ मे छड़ी पकड़े घूमते है। छड़ी, पालतू कुत्ते को आवारा कुत्तों के हमले के अलावा मुँह न लगाने की होती है। वेक्सीनेटेड पालतू कुत्तों को आवारा कुत्तों के नानवेक्सीनेटेड होने के कारण काटने की स्थिति में वेटनरी डॉक्टर के यहां ले जाने की मुसीबत सामने खड़े होने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है। पालतू कुत्ते वाले मालिक मूलतः एकलव्य सृदशय सृदृश्य होते है जो बेसमय भोकने, काटने ओर रोने वाले आवारा कुतो के मुंह को स्थाई रूप से बंद करने की मंशा रखते है लेकिन पशु अत्याचार निवरण अधिनियम 1960 और मेनका गांधी की सजगता के कारण बने पशु संरक्षण संगठन के चलते केवल नगर निगम/पालिकाओं सहित डॉग केचर स्क्वाड पर लानत भेज संतोष कर लेते है।
पालतू कुत्तों के मालिकों सहित मोहल्ले के अनेक लोगो को आवारा कुत्तों के प्रति नाराजगी का भाव होता है। ये लोग अन्य मोहल्ले से आकर अपने पाप और ग्रह बाधा को दूर करने के नाम पर रोटी ,ब्रेड, बिस्किट खिलाने वालो से नाखुश रहते है। क्योंकि आवारा कुत्ते बेसमय समूह में भोंकने का काम करते है, रात में रोते है, अंजान लोगो को रात में दौड़ाते है कभी कभी काट भी देते है, इन अवगुणों के चलते पालतू कुत्ते के मालिकों ने नागपुर न्यायालय में याचिका लगा दी कि आवारा कुत्तों को रोटी, ब्रेड बिस्किट खिलाने वालो को इतनी ही कुत्तों के भूख की चिंता है तो वे लोग आवारा कुत्तों को पालतू बनाने के लिए शरण दे।
स्वच्छता अभियान औऱ एकल परिवार के चलते आवारा कुत्तों के लिए भोजन की समस्या बढ़ते जा रही है। कुत्ते अब गोबर को भी भोजन का विकल्प मान रहे है लेकिन अनेक राज्यो में गोबर सरकार खरीद रही है सो आवारा कुत्तों को ग्रह पीड़ित लोगों सहित पशु प्रेमियो की तलाश रहती है। जो मिलते भी है।
नागपुर न्यायालय ने आवारा कुत्तों की समस्या और उनके भोजन के व्यवस्था के लिए नगर निगम नागपुर को हिदायत दी है कि वे आवारा कुत्तों का बेहतर व्यवस्थापन करे साथ ही पशु प्रेमियो सहित धर्म मान्यताओं के अनुसार कुत्तों को भोजन उपलब्ध कराने वालों के लिए उपयुक्त स्थान चयन करें। कुत्ते, नागपुर न्यायालय के निर्णय से आस्वस्त हो सकते है। यदि सभी शहर, नगर ऐसा प्रयास करे तो आवारा कुत्ते नगर निगम के लिए एक चुनोती होंगे और सफल होने की स्थिति में लोग कुत्तो के बेसमय। भोंकने, रोने,, दौडाने, काटने की समस्या से निजात पा सकेंगे। यहां ये भी जानना जरूरी है कि भारतीय दंड सहिंता 1860 की धारा 428 में 50 रुपये मूल्य से अधिक किसी भी पशु को मारने, विकलांग करने, या निरुपयोगी बनाने में धारा 429 के तहत अधिकतम 5 साल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है। आवारा कुत्तों का मूल्य नही होता है ये सभी जानते है लेकिन कानून मूक पशुओं के प्रति भी संवेदनशील होने की उम्मीद करता है।
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