क्या चश्मदीद गवाह या सबूत न मिले तो आरोप, अपराधी नही बन पायेगा?
लेखक - संजय दुबे
दिल्ली में हुई युवती श्रद्धा के निर्मम हत्याकांड ने सारे देश मे सनसनी फैला दी है। हर दिन कोई न कोई मीडिया इस बारे में नया बताने के लिए। प्रयासरत है। पुलिस मृत युवती के शरीर के अवशेष सहित उन हथियारो को खोजने के लिए दिन रात एक कर रही है। मीडिया द्वारा ये भी बताया जा रहा है कि यदि मृत श्रद्धा का सिर नही मिलता है या हत्या के लिए उपयोग किये गए हथियार जप्त नही होते है तो सबूत के अभाव में आरोपी ,अपराधी सिद्ध नही होता है
ये बात कुछ हद तक सही है और कुछ हद तक गलत है। पुलिस सहित न्यायालय इस बात को भलीभांति जानते है कि अगर दुर्घटना सआशय नही है और महज दुर्घटना के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गयी है तो न्यायालय का नजरिया कुछ और होता है।
हत्या के अपराध में आकस्मिक आक्रोश के अलावा सुनियोजित तरीके से हत्या करने का काम आरोपी अक्सर करते है। सभी जानते है कि किसी भी अपराध के लिए सज़ा का प्रावधान है। छोटी सी धमकी से लेकर हत्या के लिए कानून व्यवस्था में सज़ा है। हत्या करने वाले एक या एक से अधिक व्यक्ति हो सकते है और अगर अपराध सिद्ध हो जाये तो एक या सभी व्यक्ति को समान रूप से सजा मिलती है। अक्सर हत्या के लिए आरोपी योजना जरूर बनाता है ताकि उसके अपराध को कोई चश्मदीद गवाह न हो। हत्या के बाद प्रयुक्त हथियार को छुपा देता है। खून से सने कपड़ो को जला देता है। मृत शरीर को अस्तव्यस्त कर देता है। इसके बावजूद अभी तक हत्या के अपराध से उंगलियों में गिनने वाले लोग सबूत के अभाव में छूटे है वो भी सर्वोच्च न्यायालय से। क्योकि निचली अदालतों के निर्णय के खिलाफ दो अपील की गुंजाइश होती ही है।
भारत के न्यायालयो में साक्ष्य अधिनियम 1872 के आधार पर किसी अपराध का निर्णय होता है। अगर चश्मदीद सबूत नही होते है तो परिस्थिजन्य साक्ष्य को जोड़कर ये साबित किया जाता है कि आरोपी ने अपराध को किस प्रकार अंजाम दिया है।
श्रद्धा हत्याकांड में आरोपी ने अत्यंत ही योजनाबद्ध तरीके से सबूत मिटाने का काम कर चुका है। उसने हत्या करने से पहले हत्या करने के लिए गूगल में उपलब्ध जानकारियों का उपयोग किया है। न केवल शरीर को अनेक हिस्सो में विभाजित कर कई जगह फेक चुका है ।संभवतः अनेक हिस्से मिले भी न तो क्या श्रद्धा की हत्या को सिद्ध नही किया जा सकेगा?
ऐसा नही है, जब सबूत न मिले तो जांच एजेंसी उन परिस्थितियों को श्रंखलाबद्ध रूप से जोड़ती है और उसे न्यायालय के समक्ष रखती है। श्रद्धा के मामले में ये तो सिद्ध है कि जिस मकान मे रहते थे उसे पति पत्नी के रूप में लिया गया था। अगर श्रद्धा गुस्से में घर छोड़कर चली भी गयी तो उसके जाने की सूचना उसके परिवार को देने की जिम्मेदारी थी। अगर गुमशुदा हुई तो भी पुलिस को सूचना देनी थी। श्रद्धा को जीवित दिखाने का अभिनय खूब किया है लेकिन सच के लिए जितने परिस्थिजन्य साक्ष्य की आवश्यकता है उस पर आधुनिक जांच तकनीक से सिद्ध किया जा सकता है। रेस इस्पा लोक्यूटर का सिद्धांत न्याय व्यवस्था में है जिसका अर्थ है कि परिस्थितियां स्वयं बोलती है। इस आधार पर पश्चिमी देशों में अनेक अंधे कत्ल का निर्णय हुआ है। भारत मे भी इस आधार पर निर्णय होते आये है। इसलिए ये नही मानना चाहिए कि श्रद्धा के निर्मम हत्या के लिए आरोपी को संदेह का लाभ मिल जाएगा। यद्यपि आरोपी ने ऐसा प्रयास करने में डालने कुटिल बुध्दि का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया है किंतु कानून में एक बात मानी जाती है कि अपराध करने वाला कितना भी शातिर क्यो न हो एक न एक सबूत जरूर छोड़ता है। यदि स्थानीय पुलिस ये काम न कर सकी तो ये केस सीबीआई को भी सौपा जाएगा मगर किसी अपराधी को इतना सक्षम नही होने दिया जाएगा कि वह समूची सामाजिक व्यवस्था को झुठला कर जांच एजेंसी को बोथरा साबित कर न्याय व्यवस्था को ठेंगा दिखा देगा।
जिला न्यायालय के बाद उच्च न्यायालयऔर फिर सर्वोच्च न्यायालय तक अपील के सफर में समय लग जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति से दया याचना का भी अवसर होता है। लेकिन ये अवधि सालो की होती है। इसमे जीना आसान नही होता है ।
About Babuaa
Categories
Contact
0771 403 1313
786 9098 330
babuaa.com@gmail.com
Baijnath Para, Raipur
© Copyright 2019 Babuaa.com All Rights Reserved. Design by: TWS