गुजरात में शिक्षा का बाजारीकरण : पवन खेड़ा

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भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेरा ने कहा कि मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा बिना किसी व्यापक चर्चा के कर दी है और बिना तैयारी के इसे लागू भी कर दिया है। सरकार ने नई शिक्षा नीति में अनुदान के स्थान पर उच्च शिक्षण संस्थान को "हेफा" द्वारा दिए जाने वाले सेंकडो करोडो लोन की व्यवस्था के माध्यम से इस बात की ओर साफ साफ संकेत दिया है | कि वो शिक्षा की पूरी जिम्मेवारी उठाने के लिए तैयार नहीं है तथा भविष्य में वो बजारों मुखी शिक्षा को प्रोत्साहित करेगें। केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गयी शिक्षा नीति 'गुजरात शिक्षा मॉडल' का ही प्रतिबिंब लगता है।

 

गुजरात में सरकारी स्कूली शिक्षा की ख़राब हालत स्वयं भाजपा के मंत्री विधानसभा में स्वीकार कर चुके है | प्रश्नकाल के दौरान विपक्षी कांग्रेस के विधायकों द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब में गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने एक लिखित उत्तर में कहा कि दिसंबर 2021 तक सरकारी प्राथमिक विध्यालयो में 19,128 कक्षाओं की कमी थी | उत्तर के अनुसार, गुजरात के 33 जिलों में, आदिवासी बहुल दाहोद 1,688 कक्षाओं की कमी के साथ सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद बनासकांठा 1,532, भावनगर 966, मेहसाणा 947 और साबरकांठा 941 है।

 

राज्य सरकार के आंकड़ों से यह भी पता चला कि 23 राजकीय प्राथमिक विध्यालय बिना बिजली के चल रहे हैं। ऐसे नौ स्कूल गिर-सोमनाथ जिले में हैं, इसके बाद पोरबंदर में 7, मोरबी में 3, कच्छ में 2 और देवभूमि- द्वारका और सुरेंद्रनगर जिले में एक-एक स्कूल हैं। भाजपा सरकार ने सदन को सूचित किया कि 5,439 राजकीय प्राथमिक विध्यालयो के परिसरों के चारों ओर कोई चहारदीवारी नहीं है।

 

गुजरात विधानसभा में भाजपा सरकार द्वारा दिए गए आंकड़े यह भी बताते हैं कि पिछले दो वर्षों में गुजरात में में 1,287 निजी स्कूलों की तुलना में मात्र 122सरकारी स्कूलों को अनुमति दी गई। इसका मतलब है कि राज्य के प्रत्येक 10 निजी स्कूलों के अनुपात में मात्र एक सरकारी स्कूल आता है। अहमदाबाद में पिछले 2वर्षों में 16 सरकारी स्कूलों की तुलना में 211नए निजी स्कूलों को, सूरत में 140 निजी स्कूलों के मुकाबले 5 सरकारी स्कूलों को, राजकोट में 129 निजी स्कूलों के खिलाफ एक सरकारी स्कूल को, जबकि कच्छ में, 48 निजी के खिलाफ 2 सरकारी स्कूलों को अनुमति दी गई थी।

 

गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा विधानसभा में दिए गए एव अन्य उत्तर के अनुसार पिछले 5 वर्षों में 1000 लड़कियों के स्कूल बंद हो गए। पिछले 5वर्षों में प्राथमिक विद्यालयों में लड़कियों के नामांकन में 2 लाख से भी अधिक (41.98लाख से 39.80लाख) की गिरावट दर्ज की गई। और मोदी जी कहते है बेटी पढ़ाओ।

 

गुजरात में यदि उच्चशिक्षा की स्तिथि की ओर नजर डालें तो 31मार्च, 2022को, गुजरात विधानसभा ने गुजरात निजी विश्वविध्यालय (संशोधन) विधेयक पारित कर राज्य में 11नए निजी विश्वविध्यालयो को परिसर खोलने की अनुमति दी। 11में से 2 प्रमुख कॉरपोरेट घरानों के है- अहमदाबाद में अदानी विवि और ट्रांसस्टैडिया लि. के तहत ट्रांसस्टेडिया विवि। कोंग्रेस को कॉरपोरेट घरानों द्वारा यदि मुफ्त / किफायती शिक्षा संस्थान खोली जाये तो कोई एतराज नहीं, परन्तु सरकारी संस्थानों के स्थान पर लाखो की फ़ीस के साथ खुलने वाली शिक्षा की दुकानों पर हमें गंभीर आपत्ति है| भाजपा सरकार ने गुजरात में 11नए निजी विश्वविध्यालयो का मार्ग प्रशस्त करना भाजपा सरकार के वित्त पोषण और सार्वजनिक शिक्षा के विस्तार से पीछे हटने का संकेत देता है। एक दशक पहले केवल सात निजी विवि थे। अब, यह 54 है। परिणामस्वरूप 11 नए विश्वविध्यालय के साथ गुजरात सबसे अधिक निजी विवि वाला राज्य बन गया है। जो सरकारी विश्वविध्यालय और कॉलेज कांग्रेस राज में खूले हैं वहां भी 27 वर्षों के भाजपा राज में शिक्षक स्थाई नौकरी की राह तकते हुए, मामूली वेतन पर कॉन्ट्रैक्चुएल तौर पर काम करने को मजबूर है।

 

अगर हम सूरत शहर की ही बात करें तो यहाँ पर पिछले 27 वर्ष में एक भी सरकारी विश्वविध्यालय और कॉलेज नहीं खुला है, बल्कि कांग्रेस की सरकार में खुली वीर नर्मद दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी से संबंधित 11 कांलेजों को पिछले वर्ष सरकार ने निजी यूनिवर्सिटी में शामिल कर दिया। परिणामस्वरूप छात्रों को तीन-चार गुना अधिक फीस चुकानी पड़ रही है। ऐसा सिर्फ सूरत में ही नहीं बल्कि गुजरात के अन्य हिस्सों में भी देखने को मिला है | उदहारण के लिये गुजरात विश्वविध्यालय अहमदाबाद के 15 कोलेज भी निजी विश्वविध्यालय में शामिल कर दिया गए | जहां कांग्रेस के नेता श्री इश्वरलाल गुलाबभाई देसाई ने कांग्रेस सरकार के दौरान स्वयं भूमि दान का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विश्वविध्यालय के लिए 200 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाई, वहीं आज भाजपा सरकार 20 एकड़ जमीन को बेचकर शिक्षा के बाजारीकरण की परम्परा को मजबूत कर रही है।

 

ऐसे देश में जहाँ बहुसंख्यक परिवारों की आय 10000 रुपये महीने से कम है वहां निजी शिक्षण संस्थाओं के कन्धों पर शिक्षा के जिम्मेवारी को छोड़ने का अर्थ होगा शिक्षण की दुकानों की बढ़ोतरी, जहाँ आम जनता को लूटा जायेगा। जिनके पास लुटवाने लायक पैसे नहीं होंगे, उनको पत्राचार पाठ्यक्रम या ऑनलाइन शिक्षा के झुन झूने से दोयम दर्जे की शिक्षा द्वारा अपने को संतुष्ट करना होगा। शिक्षा का बाजारीकरण के माध्यम से भाजपा सरकार निम्न व मध्यम आय के परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर बंद करने का दुष्कर्म कर रही है, जिससे लाखों परिवारों की भावी पीढ़ी के भविष्य पर संकट खड़ा हो रहा है।


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