देवानंद- जो जिंदगी को धुंए में उड़ाता नहीं चला गया

लेखक - संजय दुबे

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"सदाबहार" शब्द सुनते ही साथ साथ एक नाम जेहन में आता है- देव आनंद का। ये नाम असाधारण नाम है पर्दे पर कल्पना को यथार्थ करने वाली फ़िल्मी दुनिया का। ब्लैक एंड व्हाइट से लेकर कलरफुल फिल्मों के अनोखे अभिनेता रहे थे - देवानंद। भारतीय फिल्मों में जब ग्रामीण संस्कृति पैठ बनाये हुए थी तब देवानंद शहरी जिंदगी को जीने की शुरुआत कर रहे थे। 112फिल्मों में देवानंद कभी भी गाँव के रहने वाले अभिनेता नही बने। उन्होंने कभी भी धोती पहनने वाले अभिनेता की भूमिका नही की। इस कारण वे"अर्बन हीरो" भी कहलाये गए।

 देवानंद के ब्लेक एंड व्हाइट फिल्मों के जमाने मे देवानंद के सामने राजकपूर, दिलीप कुमार, राजकुमार, जैसे कलाकारो से अलग लकीर खींचने के लिए ही कुछ नया करने की चुनौती थी और उन्होंने बखूबी ये काम किया। यद्यपि वे "हम सब एक है" फिल्म के माध्यम से आये थे लेकिन उनके जिद्दीपन ने "जिद्दी" फिल्म के माध्यम से अपने अभिनय का बाजार बनाया वह लगभग आगे 50 साल तक चलता रहा।

 ऊँचे कद के देवानंद की अपने केश विन्यास की अलग स्टाइल थी, कपड़े के मामले वे इतने सजग रहे कि उनके ब्लेक एंड व्हाइट कॉम्बिनेशन के शर्त कोट पेंट एक ट्रेंड बन गया था। उनकी खूबसूरती इतनी गजब ढाती थी कि कोर्ट को उनके ब्लेक एंड व्हाइट शर्ट कोट पेंट पहन कर सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी। चाल ढाल भी उनकी अलग रही, पूरे शरीर को वे ढीला छोड़ कर सिर हिलाने की अदाकारी आज भी अविस्मरणीय है। कलरफुल फिल्में आयी तो देवानंद और भी आकर्षक हुए। वे ही ऐसे अभिनेता थे जो 55 साल की उम्र में नायक बनने का हौसला दिखाया। "अमीर गरीब" फिल्म में देवानंद ने जो लकीर खिंची आगे के समय मे जितेंद्र, धर्मेंद्र, अमिताभ, सलमान, शाहरुख, आमिर के लिए माइल स्टोन बना। 

 देवानंद दर्शकों की नब्ज पहचानते थे इसके चलते वे नवकेतन के बैनर पर फिल्मों के निर्माता निर्देशक दोनो बने। अगर कहा जाए तो उनकी 112 फिल्मों में गाइड ऐसी फिल्म थी जिसे क्लासिक फिल्मों के श्रेणी में श्रेष्ठ माना जाता है। उनकी फिल्मों में गाने की भूमिका महत्वपूर्ण रही। किशोर कुमार ने "जॉनी मेरा नाम" फिल्म मे "पल भर के लिए कोई हमे प्यार कर ले" गाया तो तब के नौजवानों ने देवानंद बनने की कोशिश की। "देश परदेश" में" तू पी और जी गाया" तो मयखाने छलक गए। "हरे राम हरे कृष्ण" में "फूलों का तारो का सबका कहना है" आज भी सुमधुर गाने में शुमार है। मान सकते है कि चयन के मामले में देवानंद धनी थे। विषय भी उन्होंने बेहतर चुने और उनका फिल्मांकन भी बेहतर किया।

 उनकी 112 फिल्मों में टैक्सी ड्राइवर, मुनीम जी,पेइंग गेस्ट, सी आई डी, काला पानी, गाइड, ज्वेल थीफ, जानी मेरा नाम, हरे राम हरे कृष्ण, देश परदेश उनकी जानी मानी फिल्में थी। जिसे दर्शकों ने खूब प्यार दिया। 1978 से लेकर 2005 तक वे उटपटांग फिल्मों के निर्माता रहे जो उनकी सनक थी, बूढ़े न दिखने की, सनकपन ने उनको वो काम कराए जो उनकी नज़र में काम था। वे मुख्यधारा से हटना नही चाहते थे कह सकते है कि वे व्यस्त होने के लिए अस्त व्यस्त भले ही हो गए थे। बुढ़ापे का डर उन्हें बहुत रहा वे जवान दिखने के चक्कर मे झुर्रियों को छिपाने के लिए शर्ट के कालर को उठाते गए, सिर को टोपी से छुपाते गए पर सच भी फिल्मों के समान ही तो जिसका द एंड होना तय है। फिल्मों के सदाबहार भी इस सच से बच न सके।


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