खूबसूरत लोकतंत्र
लेखक - संजय दुबे
दो राज्य, एक महा नगरनिगम , एक संसदीय क्षेत्र सहित पांच राज्यो के विधानसभा उपचुनावों के परिणाम घोषित हो गए। लोकतंत्र में मतदान को पर्व का दर्जा मिला है और इसकी खूबसूरती देखने के लिए परिणाम देखे जाते है। चुनाव में भाग लेने वाले राजनैतिक दलों के द्वारा अपनी नीतियों की खूबसूरती मतदाताओं के सामने परोसी जाती है। मतदाता देखता है और अंत मे उसके सामूहिक निर्णय के बल पर सरकारें बनती बिगड़ती है। रामधारी सिंह दिनकर की कविता की पंक्ति उद्बोधित होती है- सर्दियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो
सिंहासन खाली करो जनता आती है कहावत चरितार्थ होती है।
2023 में संभावित तीन राज्यो के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा के आम चुनाव के पहले का अंतिम चुनावी मेले में आये सभी राजनैतिक दलों को मतदाताओं ने अगले चुनाव के लिए "च्वयनप्रास" देकर उत्साह से लबरेज़ कर दिया है। हर पार्टी कह सकती है कि उसका सामर्थ्य है और अगले लोकतंत्र के पर्व में वे परीक्षा देने के लिए अपनी तैयारी करेंगे।
लोकसभा चुनाव से शुरुआत करें तो उत्तरप्रदेश में नेताजी के नाम से विख्यात मुलायम सिंह यादव के मृत्यु के कारण रिक्त हुए मैनपुरी लोकसभा सीट पर उनकी बहू डिंपल यादव को समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था। मुलायम यादव उत्तरप्रदेश में समाजवाद के पुरोहा रहे थे। उनकी प्रसिद्धि का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी बहू 2.80 लाख मतों के भारी अंतर से भाजपा को पराजित किया। अखिलेश यादव को संतुष्टि होगी कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी को डिंपल की जीत ने ऊर्जा दिया है।
दो राज्य गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में अलग अलग मोदी और नड्डा ने कमाल सम्हाली थी। गुजराती अस्मिता के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात ने एक तरफा आशीर्वाद देते हुए 156 सीट पर विजय का तोहफा दिया। 37 साल पहले गुजरात मॉडल से शुरू हुआ अश्वमेध यज्ञ के विजय रथ को न तो कांग्रेस रोक सकी न ही दमखम के नाम पर उतरी आप। आप पार्टी का फायदा ये रहा कि मत प्रतिशत का लाभ पाकर निर्वाचन आयोग में राष्ट्रीय पार्टी बनने का दर्जा प्राप्त कर लेगी। गुजरात मुख्यतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। देश दुनियां में गुजरात और गुजराती समाज का ब्रांड के रूप में नरेंद्र मोदी को स्थापित करने में गुजरात के मतदाताओं ने उत्साह दिखाया। ये चुनाव भाजपा को एक ही राज्य में लगातार राज्य करने के मामले में पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट पार्टी के बराबरी में ले आया है।
हिमांचल प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी को अगले चुनाव में विपक्ष में बैठाने का दस्तूर है इसमे कोई बदलाव नहीं हुआ और पिछले चुनाव में विपक्ष में बैठी कांग्रेस अब पक्ष में आ गयी है। कांग्रेस के नव निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिये सुकून की बात है कि दो राज्यो के विधानसभा चुनाव में 50 फीसदी राज्य में जीत उनके हिस्से में आई। मध्यप्रदेश में कमलनाथ के हाथ से सत्ता जाने की भरपाई हिमांचल में हो गयी है। भाजपा मतदाताओं के मिले मतों के प्रतिशत से संतुष्ट हो सकती है कि हार के बावजूद मतदाता एक से कम प्रतिशत रूठे है। ये बात अलग है कि हार, हार होती है इसके लिए मंथन होगा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के गृह राज्य में दस्तूर का नवीनीकरण क्यो नही हुआ।
विधानसभा उपचुनाव में उत्तरप्रदेश में भाजपा ने सपा से रामपुर, तो सपा ने भाजपा से खतौली सीट छीन कर बराबरी में मामला छोड़ा सरदारपुर ( राजस्थान ) औऱ भानुप्रतापपुर (छत्तीसगढ़) में कांग्रेस ने अपना गढ़ बचाये रखा और आश्वस्त भी हुए की अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में वे अपना वर्चस्व बनाये रखेंगे बिहार में कुढ़नी सीट राजद से छीन लिया। पदमपुर (उड़ीसा ) में बीजू जनतादल का भी यही हाल रहा। आमतौर पर उपचुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी के जीतने का चलन रहता है क्योंकि कौन से विधानसभा क्षेत्र का मतदाता गड्ढा खोदवाना चाहता है।
अंत में आता है दिल्ली एमसीडी का चुनाव, दिल्ली के चार में से तीन निगमो में भाजपा काबिज़ थी। दिल्ली जीतने में मंसूबे ने महा नगरनिगम के निर्माण की अधोसंरचना को आकार दिया लेकिन सात सांसदों के होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल का झाड़ू चला और उनकी आप पार्टी ने दिल्ली फतह कर ली। भाजपा के लिए देश मे कब्जा होने के बावजूद राजधानी में पैठ न बना पाना सोंच का विषय होगा जिसका असर अगले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन में दिखेगा।
आप पार्टी ने भले ही गुजरात मे 5 सीट जीता लेकिन कांग्रेस के 61 सीट पर पराजय में पचास प्रतिशत काम कर दिखाया। 13 प्रतिशत मत आप पार्टी के लिए संतोष का विषय हो सकता है लेकिन पंजाब जैसा करिश्मा न तो गुजरात मे हुआ उल्टा हिमांचल प्रदेश में तो अंडा भी नहीं फूटा। आप पार्टी , राष्ट्रीय पार्टी बनने की अनिवार्य मत प्रतिशत से ऊपर हो गयी है तो राज्य स्तर पर संगठन बनाने में मदद मिल जाएगी।
अगले साल भाजपा और कांग्रेस के बीच चुनाव का मैदान मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सजेगा। 2018 में तीनों राज्य कांग्रेस की झोली में गए थे। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के मतभेद ने शिवराज सिंह को चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर थमा दिया। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का विद्रोह खुले आम जारी है। इन दोनों राज्यो में भाजपा को मौका मिल सकता है लेकिन छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने कांग्रेस को मजबूत से औऱ आगे लेजाकर स्थापित कर दिए हैं। उनके अभेद गढ़ पर किला फतह करने में भाजपा को अगले 6 साल मेहनत करनी पड़ेगी ऐसा भानुप्रतापपुर की जीत तो बयां करती है।छत्तीसगढ़ मॉडल के बल पर हिमांचल की जीत की बुनियाद बनी है सो माना जा सकता है कि कांग्रेस में अहमद पटेल के रिक्त स्थान को भूपेश बघेल ने बिना चयन के प्रमाणित कर दिया है।
फावड़े और हल राजदंड बनने को है
घूसरता सोने से श्रंगार सजाती है
दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो
सिंहासन खाली करो जनता आती है।
यही लोकतंत्र की खूबसूरती है।
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