भारतीय ओलंपिक संघ में उषा
लेखक - संजय दुबे
खेल संघों में राजनीतिज्ञों के पैठ रखने की इबादत में इस बार नयापन आया है। राजा महाराजाओं के बाद राजनीतिज्ञों के वर्चस्व से भारतीय ओलंपिक संघ में के बाद पूर्णतः खिलाड़ी के रूप में पी टी उषा अध्यक्ष पद पर शुशोभित हो गयी है। भारतीय ओलंपिक संघ में पुरुषो का ही वर्चस्व रहा है।95 साल के ओलंपिक संघ में पहली बार कोई महिला अध्यक्ष बनी है। खिलाड़ियों के बारे में कहा जाता है कि वे अच्छे प्रशासक नहीं होते है। पी टी उषा को ये मिथक तोड़ने की जिम्मेदारी होगी क्योंकि वे स्वयं खिलाड़ी है और खिलाड़ियों को होने वाली प्रशासकीय परेशानियों से खुद दो चार हो चुकी होंगी।
ओलंपिक खेलों का उद्देश्य विश्व को बंधुत्व के कड़ी में जोड़ने के लिए चार साल के अंतराल में खेलो के महाकुंभ का आयोजन करना है। खिलाड़ियों को तो खेल से मतलब रहता है लेकिन उनका प्रबधंन बहुत बड़ा काम होता है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओलंपिक संघ है और हर देश मे इसका राष्ट्रीय संघ भी है।
भारत मे राष्ट्रीय स्तर पर 1927 में ओलंपिक संघ का गठन हुआ। पहले अध्यक्ष सोराब जी टाटा बने और 1928 में भारतीय दल ओलंपिक खेलों में भाग लेने गया। सोराब जी टाटा महज एक साल ही अध्यक्ष रहे।
राजा महाराजाओं के जमाने मे खिलाड़ी बाभरोसे राजाओं के रहा करते थे। खिलाड़ियों की देख रेख, आवास, भोजन, आवागमन का जिम्मा राजाओं का रहता था। भारत मे ओलंपिक संघ गठन के बाद महाराजाओं के पास ही संघ का अध्यक्ष रहा। पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने 1928 से 1938 तक अगले दस साल अध्यक्ष बने। मूलतः वे क्रिकेट खिलाड़ी थे। 27 प्रथम श्रेणी के मैच खेले थे। उनके कार्यकाल में भारतीय खिलाड़ी दल 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया। 1938 में महाराजा यादविंद्र सिंह अध्यक्ष बने। 22 साल(1938 -1960) का कार्यकाल यादविंद्र सिंह के हिस्से में आया। यादविंद्र सिंह भी क्रिकेट खिलाड़ी रहे थे। उन्होंने 1934 में भारत की तरफ से इंग्लैंड के खिलाफ एक टेस्ट भी खेला था। उनके कार्यकाल में भारतीय खिलाड़ी1950,1954 और 1958 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया।1960 में भलिन्दर सिंह अध्यक्ष बने औऱ अगले 15 साल तक उनकी अध्यक्षता बरकरार रही। भलिन्दर सिंह1980 से 1984 तक भी अध्यक्ष रहे थे। ओलंपिक संघ के अध्यक्षो में केवल भलिन्दर सिंह ही दो बार अध्यक्ष बने है। उनके कार्यकाल में भारतीय खिलाड़ियों ने 1960,1964, 1968 1972 और 1980 के ओलंपिक खेलों में हिस्सेदारी की।
1984 में राजा महाराजाओं का युग खत्म हुआ और राजनीति में पैठ रखनेवालों ने खेल संघों में दखलंदाजी शुरू कर दी। छत्तीसगढ़ के विद्याचरण शुक्ल इस परंपरा के पहले वाहक बने। 1984 से 1987 तक विद्याचरण शुक्ल अध्यक्ष रहे।उनके हिस्से में केवल 1984 का चीन ओलंपिक खेल आया।
शिवांती आदित्यन ने 1987 में संघ का अध्यक्ष पद सम्हाला और अगले 9 साल(1996 तक) अध्यक्ष बने रहे। उनके अध्यक्ष काल मे भारतीय खिलाड़ियों ने1988,1992 और 1996 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया। आदित्यन मूलतः मीडिया जगत का प्रतिनिधित्व करते थे। 1996 में कांग्रेस के सुरेश कालमाड़ी ने अध्यक्ष पद सम्हाला ।वे 15 साल तक(1996 से 2011 तक) अध्यक्ष रहे। 2000,2004,और 2008 ओलंपिक खेलों में भारत उनके अध्यक्ष काल मे प्रतिनिधित्व किया।
सुरेश कालमाड़ी, का नाम कामनवेल्थ खेलो में अनियमितता के कारण सुर्खियों में आया और उन्हें पद छोड़ना पड़ा। कालमाड़ी के बाद विजय कुमार मल्होत्रा,अभय कुमार चौटाला,नारायण रामचन्द्रन, ऐसे नाम रहे जो एक डेढ़ साल के ही अध्यक्ष रहे। नरेन्द्र बत्रा ने 2014 से 2022 तक अध्यक्ष पद सम्हाला। 2016 और 2021 का ओलंपिक खेलो में भारतीय खिलाड़ी नरेंद्र बत्रा के कार्यकाल में खेलने गए। नरेंद्र बत्रा भी अनियमितता के कारण हटाये गए। उनके बाद अनिल खन्ना और आदिले समरियावाला ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने। आदिले 1980 मास्को ओलंपिक खेलों में 100 मीटर दौड़ के धावक रहे है। उनके हिस्से में केवल 3 महीने का कार्यकाल रहा है। अब देश की प्रख्यात महिला खिलाड़ीपी टी उषा जो एथलेटिक्स खेलो से जुड़ी है उन्हें मौका मिला है।1984 ओलंपिक खेलों में सेकंड के 100वे हिस्से से पदक चूका था उनका।1986 सियोल एशियाई खेलों में 4 स्वर्ण पदक जीत कर उन्होंने कीर्तिमान रचा था। एशियन एथलेटिक्स स्पर्धा में 14 स्वर्ण, 6 रजत और 3 कांस्य पदक जीतने वाली उषा सही में ओलंपिक संघ में नई सुबह ही है।
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