क्या रंग भी सम्प्रदायिक है!

लेखक- संजय दुबे

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दुनियां में मूल रंग नीला, लाल और हरे रंग को माना जाता है।इनके ही मिश्रण से अनेकानेक रंगों का निर्माण होता है। इनके अलावा चार अन्य रंग पीला, नारंगी,जामुनी और बैगनी को मिला कर सात रंग बनते है जो इंद्र धनुष में देखने को मिलता है। काला और सफेद भी रंग माने जाते है। प्रकृति के द्वारा इस धरा में सात रंगों के परस्पर समायोजन से अनगिनत रंगों का सृजन होता है।

देखा जाए तो रंग उल्लास, उत्साह और उमंग के प्रतीक है।जिन्हें दिखने से सुकून मिलता है। जानवर से इंसान बनने की लाखों साल की प्रक्रिया में इंसान ने रंगों को खुद के साथ साथ अपने उपयोग की वस्तुओं को संवारा है। इंसान को भले ही लगता होगा कि वह प्रकृति में बिखरे हर रंग को पहचान सकता है लेकिन उससे ज्यादा रंगों की पहचान क्षमता तितली और मधुमक्खी के पास है।

  दुनियां में जितने देश है उनके पहचान के लिए राष्ट्रीय ध्वज है जिसमे अनेक रंग है लेकिन किसी भी देश का अपना राष्ट्रीय रंग क्यो नहीं है । रंगों का कोई धर्म है, जाति है, लिंग है, सम्प्रदाय है? नहीं, रंगों का कोई राष्ट्र, धर्म, जाति, लिंग या सम्प्रदाय नहीं है।इंसान ने अपने मतलब के लिए रंगों जो संकुचित करने की सफल कोशिश की है और इसका उपयोग स्वार्थ साधने में करता है। इसका जीता जागता उदाहरण पठान फिल्म में दीपिका पादुकोण और शाहरुख खान पर फिल्माया गया गाना "बेशर्म रंग"है। इस गाने में दीपिका पादुकोण ने केसरिया या भगवा रंग के ऐसे परिधान पहने है जिससे अंग प्रदर्शन हो रहा है। इस गाने में दीपिका पादुकोण के परिधान के रंग को लेकर आपत्ति की जा रही है।संभवतः केसरिया अथवा भगवा रंग को धर्म विशेष के साथ इसलिये जोड़ा गया है क्योंकि उनमें संन्यास के आश्रम में इस रंग को पहना जाता है। उनके एक पूज्य का लेपन रंग भी इसी रंग का है। कुल मिलाकर भगवा या केसरिया रंग क्या एक धर्म, या जाति या सम्प्रदाय का एकाधिकार है इसी प्रकार एक अन्य रंग को उनके धर्म जाति या सम्प्रदाय तक सीमित करने के सार्थक प्रयास हो भी चुके है। 

  रंगों को किसी भी प्रकार के चश्मे से देखना कतई उचित नहीं है। जिसे जो रंग पहनना है उसे पहनने दिया जाए। रहा सवाल दीपिका पादुकोण के अंग प्रदर्शन का तो उनके पहनावे का विरोध करने वाले ये भी जान ले कि ओटीटी पर जो परोसा जा रहा है जिसे देश के 89 प्रतिशत मोबाइल यूज़र्स देख रहे है उसमें अंग प्रदर्शन की सीमा ही नही है। विरोध, सार्थक हो और समान हो। केवल विरोध करना ही उद्देश्य नही होना चाहिए। दीपिका पादुकोण के अंग प्रदर्शन को अगर इस देश का सेंसर बोर्ड( भारत सरकार का उपक्रम) इजाजत देता है तो ये मानना चाहिए कि एक संवैधानिक संस्था ने स्वीकार किया है।। जिसने कभी सत्यं शिवं सुंदरम, राम तेरी गंगा मैली, जैसी फिल्मों को प्रदर्शन की अनुमति दे चुका है।


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