रामायण और रामानंद सागर
लेखक- संजय दुबे
मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनियां में आदर्श रिश्तों के केंद बिंदु के रूप में जाने जाते है। सम्पूर्ण रामायण के केंद्र बिंदु के रूप में वे जनमानस के जननायक है।
भारत में एक समय तक श्राव्य के माध्यम से राम, रामायण के पाठन के जरिये सुने जाते थे। गाँव गाँव मे नवधा रामायण पाठ इस बात के गवाह है। पढ़ने वाले लोग निरंतर पाठ करते और अनपढ़ लोग सुन कर आनंद लेते। वक्त के साथ देश के लोग साक्षर हुए और रामायण पठन का भी विषय हो गया। श्राव्य और पठन के बावजूद राम परिकल्पना में ही रहे।
देश मे दूरदर्शन के पदचाप के बाद धारावाहिक कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। इस देश मे जब दादा साहेब फाल्के फिल्म की शुरुआत कर रहे थे तब देश के धर्मिक चरित्र केंद बिंदु हुआ करते थे। दूरदर्शन में भी इसी परंपरा का निर्वाह हुआ।
1984 के साल से दूरदर्शन में धारावाहिकों की शुरूआत हुई और तीन साल बाद दृश्य -श्राव्य के संयुक्त माध्यम से रामायण धारावाहिक की शुरुवात हुई। "आंखे" जैसी फिल्म बनाने वाले रामानंद सागर रामायण जैसे महाग्रंथ को आम दर्शकों के लिये ले कर क्या आये "लोकप्रियता" शब्द के नए आख्यान लिखने की जरूरत आन पड़ गयी।
रविवार को 45 मिनट का समय अघोषित कर्फ्यू सा हो चला। लोग अपने सारे काम समेट कर 10 बजे दूरदर्शन के सामने बैठ जाते। रामायण धारावाहिक के पहले आम जनों में रवि वर्मा के द्वारा बनाये गए राम के चित्र से निकल कर राम अरुण गोविल बन गए।
रामानंद सागर, जिनके द्वारा बनाये गए रामायण धारावाहिक को किसी भी प्रोड्यूसर ने प्रायोजित करने का साहस नही किया था तो रामानंद सागर ने स्वयं ही जोखिम उठाया था। उनके धारावाहिक ने 78 सप्ताह तक परिवार को 45 मिनट एकजुट रखने का काम किया। ये बात अलग है कि घर के भीतर का संयुक्तिकरण अस्थायी रहा। राम, घर घर तो पहुँचे लेकिन वे मनोरंजन के सशक्त माध्यम रहे । उनके चरित्र को आत्मसात करना कठिन कार्य है।
रामानंद सागर के धारावाहिक का सबसे बड़ा फायदा ये रहा कि देश मे राम राज्य की परिकल्पना के भी राजनैतिक सपनो की बनावट और बुनावट दोनो देखने को मिला । इससे परे राम जन जन के नायक आदिकाल से रहे उनको दूरदर्शन के माध्यम से आम जनों तक पहुँचाने वाले रामानंद सागर आज ही के दिन जन्म लिए थे। एक व्यक्ति देश की धार्मिक संस्कृति को प्रसारित करने का साहस करता है ऐसे व्यक्ति को याद जरूर किया जाना चाहिए।रामानंद सागर की प्रासंगिकता का इससे बड़ा क्या उदाहरण हो सकता है कि कोरोना बीमारी के समय लगे लॉक डाउन के समय रामायण पुनः प्रसारित हुआ। 75 करोड़ लोग इसे देखे, समय बिताए, राम बन पाए या न बन पाए ये व्यक्तिगत मुद्दा है। मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सो दशरथ अजर बिहारी
राम सियाराम सियाराम जय जय राम
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