ऊपर वाले कि लम्बी सीटी बजी, पेले का खेल खत्म
लेखक- संजय दुबे
जिंदगी भी फुटबॉल के खेल के समान ही है। जैसे फुटबॉल खेल में खेल का समय निर्धारित है वैसे जिंदगी का भी समय निर्धारित है। खेल में कभी कभी अतिरिक्त समय मिलता है जिंदगी में भी मिल जाता है। खेल में सडन डेथ का अवसर भी आता है तो जिंदगी में भी ऐसे अवसर बनते है। खेल में रेफरी की लंबी सीटी बजते ही खेल खत्म हो जाता है वैसे ही जिंदगी की समाप्ति भी ऊपर वाले की लंबी सीटी बजते ही खत्म हो जाती है। फुटबॉल खेल के मिथक कहे जाने वाले पेले का भी कल खेल खत्म हो गया। 90 मिनट के फुटबॉल खेल का तिलस्म कहे जाने वाले खिलाड़ी जीवन के 82 वे मिनट(साल) में ऊपर वाले की लंबी सीटी बज गई। फुटबॉल के मैदान से पेले पहले ही बिदा हो गए थे कल जीवन के मैदान से भी पेले बिदा हो गए।
फुटबॉल में न जाने कितने महान खिलाड़ी हुए लेकिन महानतम खिलाड़ी एक ही रहा और जब भी किसी खिलाड़ी ने फुटबॉल के मैदान में अद्भुत प्रदर्शन किया तो उसकी तुलना पेले से ही की गई।"द ग्रेटेस्ट" की उपाधि फीफा एससोसियेशन ने केवल पेले को दिया क्योकि ब्राज़ील का स्वर्णिम काल पेले के रहते ही चला था।" एकाधिकार"(monopoli) एक शब्द है जिसका बहुतायत से उपयोग अर्थशास्त्र में किया जाता है लेकिन पेले इस शब्द को खेल में ले आये। उनके 16 साल के अंतरास्ट्रीय केरियर में ब्राज़ील 1950, 1958 और 1962 में विजेता रहा था। महज 17 साल में पेले ने फुटबॉल के मैदान में कदम रखा था। उनके साथ साथ एक युग चला और उनका देश, एक ऐसा देश बन गया है जो1930 से लेकर 2022 तक के आयोजन का चश्मदीद गवाह रहा है। विश्व का कोई भी देश इस उपलब्धि का गवाह नही बन पाया है।इटली, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, इंग्लैंड अर्जेंटीना सभी विश्वजेता रहे है लेकिन इनको किसी न किसी आयोजन में बाहर रहना पड़ा है।
पेले, एक और अनोखे परम्परा के प्रवाहक बने थे।1930 से 1950 के पहले तक फुटबॉल जगत में देश की टीम यूनिफॉर्म पहनती थी।उसमें नंबर परम्परा में 10 नंबर की शुरूआत पेले से हुई थी। पेले के प्रदर्शन ने 10 नंबर को ऐसा स्थापित किया कि आज के दौर में हर देश का सबसे बेहतर खिलाड़ी इस नंबर की जर्सी पहनता है। चाहे मैसी हो या एम्बापे या मर्डोक हो या ब्राज़ील का नेमार। 10 नंबर को मैदान में देखते ही लगता है कि अगले जादूगर की संभावना इस खिलाड़ी में है।
फुटबॉल के जादूगर पेले ने "साइकल किक " शाट का ईजाद किया था। अगर गोलकीपर के सामने खिलाड़ी फुटबॉल को लेकर शॉट मारता है तो गोलकीपर अनुमान लगा सकता है लेकिन पीठ गोलकीपर की तरफ हो तो कठनाई होती है अनुमान लगाने में। पेले ऐसा अक्सर किया करते थे और परिणाम भी निश्चित गोल होता था।
कल देश दुनियां के फुटबॉल मैदान में अजीब सा सन्नाटा पसर गया है। गोलपोस्ट के आगे कोई गोलकीपर नही है सामने से 10 नम्बर की जर्सी पहने पेले के न होने की कमी खल रही है। ईश्वर ने अपने फुटबॉल के ग्राउंड के लिए पेले को बुला लिया है लम्बी सीटी बजाकर, खेल खत्म होता है पेले का भी सफर खत्म होता है।अलविदा जादूगर, शुक्र ये भी है कि तुमने फीफा कप खत्म होने के बाद अलविदा कहा वरना तुम्हारी आत्मा अतृप्त रहती।
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