नोटबन्दी के विमर्श पर न्यायालय की मोहर
लेखक- संजय दुबे
8 नवम्बर 2016 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के पत्रमुद्रा गाने नोट को इनवैलिड टेंडर घोषित करते हुए निर्धारित समय मे इन्हें बदलने के लिए आगे समय दिया गया, विकल्प दिए गए। तयशुदा समय मे 99.25 प्रतिशत से अधिक 500,1000 के नोट रिज़र्व बैंक के पास वापस भी आ गए।
प्रश्न ये भी उठा कि यदि 100 फीसदी नोट में से 99.25 फीसदी नोट वापस आ गए तो औचित्य क्या था?
राजनीति के लिए पक्ष और विपक्ष के अपने अपने मापदंड होते है। खूबी बताई गई तो कमियां भी गिनाई गयी।
दोनो अपनी अपनी जगह पर तर्कपूर्ण रही होंगी। कल उच्चतम न्यायालय के 5 सदस्यीय पीठ ने नोटबन्दी को तकनीकी ढंग से गलत न मानते हुए प्रक्रियात्मक रूप से सही मान लिया।
अर्थशास्त्र के अनुसार हर देश मे अधिकृत मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करने के लिए अनधिकृत मुद्रा का बाजार खड़ा किया जाता है। नकली मुद्रा की समस्या से दुनियां के हर देश प्रभावित है।अमेरिका, रूस, फ्रांस जैसे देश मे नकली मुद्रा चलन में है। हमारे देश मे ये समस्या ज्यादा बड़ी है।नेपाल और पाकिस्तान सहित देश मे ही नकली नोट छपाने का काम भारी पैमाने पर होता है। अनुमान था कि देश मे जब 500 औऱ 1000 के नोट प्रचलन में थे तब लगभग 23 प्रतिशत नकली मुद्रा चलन में था। इसके चलते देश के पत्र मुद्रा का अंतरास्ट्रीय मूल्य कमजोर हो रहे थे दूसरा मुद्रास्फीति पर भी प्रभाव पड़ रहा था। इस दृष्टि से अतिरिक्त 23 फीसदी नोट चलन से स्वयमेव बाहर हो गए। विदेशों में अवैध रूप से रखी गयी मुद्रा अवैध होना भी देश हित है।
समाज शास्त्र के नजरिये से अगर नोटबन्दी को देखे तो इसे सुधारात्मक मानना उचित होगा। हर देश मे अधिकृत मुद्रा का अनधिकृत दुरुपयोग का अपना जुदा संसार होता है। अपने ही देश की मुद्रा का दुरुपयोग कर देश मे आतंकवाद, नशा खोरी, सहित देश की सांस्कृतिक अवधारणा को कमजोर करने के भी प्रयास होते है।ये काम विदेश में बैठे लोग देश के ही लोगो से करवाते है। आपको सरफरोश का एक डायलॉग याद कराना चाहूंगा । पड़ोसी मुल्क के लोग खुशकिस्मत है कि उन्हें केवल हथियार ही भेजना पड़ता है, आदमी तो यही मिल जाते है। नोटबन्दी से देश के भीतर के आतताइयों की कमर टूटी औऱ देश के भीतर ही देश को कमजोर करने वाले कमजोर पड़ गए। नक्सलवाद भी नोटबन्दी के चलते कमजोर हुआ क्योकि इनको अपने को मजबूत करने के लिए नगद राशि की जरूरत ज्यादा पड़ती थी।
कल उच्चतम न्यायालय के 5 सदस्यीय पीठ ने बहुमत से नोटबन्दी को प्रक्रियात्मक रूप से सही मान लिया है। अब सरकार चाहे तो 2000 रुपये के नोट प्रचलन के संबंध में विचार कर सकती है क्योंकि बाजार और बैंक से 2000 के नोट चलन से बाहर हो गए है। अर्थशास्त्र में ये बात भी कही जाती है कि बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। अनुमान है 2000 के नोट काले धन के रूप में संग्रहित हो गया है। विवेकपूर्ण ढंग से अगर इस बारे मे निर्णय लिया जाए तो बहुत कुछ काला सफेद हो सकता है।
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